Book Title: Prachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Author(s): Jayant Kothari
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 9
________________ Jain Education International संपादित कृतिओनो संशोधित संपादनग्रंथ श्री जयंत कोठारी 'गुजराती साहित्यकोश खंड - १ना मुख्य संपादक तरीकेनी कामगीरी संभाळी रह्या हता त्यारे एमने अने 'कोश'ना सौ साथीदाराने ए वातनी प्रतीति थई के जैन कविओनां अधिकरणो तैयार करवामां श्री मोहनलाल द. देशाईनो 'जैन गूर्जर कविओ' ग्रंथ ए केटलो महत्त्वनो आधारस्रोत छे! 'जैन गूर्जर कविओ' उपरांत मोहनभाईना 'जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास'. जेवा आकरग्रंथथी मांडी नानामोटा ग्रंथो तो प्रकाशित थया छे पण ए सिवायनुं एमनुं अढळक लखाण सामयिकोमां प्रगट थयेलुं यथावत् पड्युं छे. मोहनभाईए ई.स.१९१२थी १९१९ सुधी 'श्री जैन श्वेतांबर कॉन्फरन्स हेरल्ड' नुं अने सं.१९८१थी १९८६ (ई.स. १९२५थी १९३०) सुधी 'जैन युग' नुं तंत्रीपद संभाळेलुं. जोके तंत्रीपद संभाळ्या अगाउ पण एमणे 'हेरल्ड' मां लेखो प्रकाशित करवानो आरंभ तो कर्यो ज हतो. 'हेरल्ड' अने 'जैन युग' सामयिकोनी सामग्रीनी नोंध लेतां जयंतभाईना ध्यान उपर ए वात आवी के मोहनभाईए आ सामयिकोनां पानांनां पानां पोते ज लखीने तंत्री तरीकेनी पोतानी निष्ठापूर्ण जवाबदारी निभावी हती. आ लेखसामग्री वैविध्यपूर्ण हती. एमां साहित्यिक, ऐतिहासिक, चरित्रात्मक लेखो हता तो प्राचीन साहित्यनुं संपादन पण हतुं. आमांनुं घणुंखरूं साहित्य आज सुधी अग्रंथस्थ ज रह्युं छे. श्री मोहनभाईए मात्र 'हेरल्ड' अने 'जैन युग'मां ज नहीं, पण 'आत्मानंद प्रकाश', 'जैन धर्म प्रकाश', ‘जैन’, 'श्री जैन सत्य प्रकाश', 'जैन रिव्यू', 'जैन धर्म विकास', 'जैन प्रकाश' जेवां घणां सामयिकोमा अने ग्रंथोमां पण लखाणो कर्यां छे. ते जेम जेम नजरे चढतां गयां ते जयंतभाईने लाग्युं के मोहनभाईनो आ विपुल लेखन- खजानो जो ग्रंथ स्वरूपे प्रकाशित थाय तो एमनी विद्वत्प्रतिभा वधु योग्य स्वरूपे बहार आवे. परंतु आधी लेखसामग्री तो ग्रंथस्थ थाय त्यारे खरी, पण जो एमना आ बधा लेखोनी सूचि तैयार करी होय तो अभ्यासीओने मार्गदर्शक बने अने भविष्यमां ग्रंथप्रकाशननी दिशामां आगळ वधी शकाय. जयंतभाईना मनमां ऊगेला आ विचारबीजे पछी तो निर्णयनुं स्वरूप लीधुं अने लेखसूचिना आ काममां एमणे मने पण सक्रियपणे सामेल कर्यो. लेखसूचिनुं आ काम धारणा करतां घणुं जटिल नकळj. बधां सामयिकोनी फाइलो एक ज स्थळे अखंडरूपे जळवायेली नहोती, घणां ग्रंथालयो फंफोसवां पडे एम हतुं, छतां जयंतभाईए आ हाम भीडी. आ माटे अमदावाद उपरांत भावनगर, मुंबई जेवां स्थळोए जईने, त्यां रोकाईने ८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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