Book Title: Prachin Madhyakalin Sahitya Sangraha Author(s): Jayant Kothari Publisher: L D Indology AhmedabadPage 11
________________ जोवा मळशे. रासा, फागु, बारमासा, संवाद, गीतो, स्तवनो, सज्झायो, चैत्यपरिपाटी, गुर्वावली-पट्टावली-थेरावली, गझल, दस्तावेज, पत्रो-विज्ञप्तिपत्रोआज्ञापत्रो, छत्रीशी, पचीशी, हरियाळीओ, सुभाषितो, दुहा, उखाणां, बालावबोधो, प्रतिमा-लेखो एम नानीमोटी विविध प्रकारनी गद्य-पद्य रचनाओनो आ ग्रंथमा समावेश थयो छे. बेएक अपभ्रंश कृतिओ पण अहीं संपादित थई छे. प्रस्तुत ग्रंथ 'प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह'नुं प्रकाशन थतां एकसाथे बे प्रयोजनो सिद्ध थयां छे. एक तो, प्राचीन मध्यकालीन जैन साहित्यनो मोहनभाईने हाथे सामयिकोमा एकत्र थयेलो मूल्यवान खजानो ग्रंथ स्वरूपे एकसाथे हवे साहित्यरसिकोने उपलब्ध थाय छे अने बीजें, जयंतभाई जेवा संशोधकने हाथे कृतिओ संशोधित थईने वधु विशुद्ध स्वरूपे प्राप्त थाय छे. तमाम कृतिओ कंपोझ थई गई हती, अने एनां त्रण प्रूफो पण जोवाई गयां हतां. ते पछी जयंतभाईए आ ग्रंथना शब्दकोश- काम हाथ उपर ली, हतुं. ए काम मांड अडधे पहोंचे ए पहेला जयंतभाईनुं निधन थयु. संस्थाना डिरेक्टर डॉ. जितेन्द्रभाई बी. शाह साथे विचारविमर्श करतां, शब्दकोशनुं काम जयंतभाईने हाथे जेटलुं ने जे स्वरूपे थयुं छे तेटरों ने ते स्वरूपे ज प्रकाशित करवानुं इष्ट गण्युं छे. आ ग्रंथ- 'प्रास्ताविक' जयंतभाई ज लखे, एने बदले मारे लखवानुं थाय ए घटना मारे माटे एक विधिवक्रता समी छे. पण जयंतभाईनां साहित्य, संशोधन, संपादन, भाषा, कोश अने सूचिने लगतां अनेक कामोनो जेम हुं साक्षी रह्यो छु तेम एमना आ ग्रंथसंपादन-प्रक्रियानो पण हुं निकटनो साक्षी रह्यो होवाथी आ ‘प्रास्ताविक' लखवान साहस करी शक्यो छु. ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर संस्थाने आवो मूल्यवान ग्रंथ प्रकाशित करवा बदल अंत:करणपूर्वकनां अभिनंदन आपुं छु. जयंतभाईना सुपुत्र भाई रोहित कोठारीनो मुद्रणकार्यमां उमदा सहकार सांपड्यो छे एनो आनंद प्रगट करुं छु. मोहनभाईना अग्रंथस्थ लेखोनी जे अन्य सामग्री एकठी थयेली छे ते पण क्रमश: ग्रंथ स्वरूपे प्रकाशित थाय अने एमनी विद्वत्प्रतिभाने गुजरातनी प्रजा वधु साचा स्वरूपे ओळखे ए ज अभीप्सा. २१-१०-२००१ कान्तिभाई बी. शाह अमदावाद. १० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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