Book Title: Prachin Madhyakalin Sahitya Sangraha Author(s): Jayant Kothari Publisher: L D Indology AhmedabadPage 18
________________ धर्मसमुद्रकृत शकुंतला रास Jain Education International ढाळ १ १ सरसति सामिणि करू पसाय, माय, मति दियउ अति भली ए; सतीय सकुंतला जिम कवुं रास, आस पूरउ वली एतली ए. एतलीय पूरउ आस, कविवयण विरचउ वास; जिम थाइ सरस विलास, नवि होइ पंडितहास. २ नवि होई पंडितहास सारद, सार द्यउ वर सारदा; मनरंगि नव नव भाव भाखउं, तुम्ह पसाइ हूं सदा. साकेतपुर वर नयर नामिर्हि, अमरनयर हरावए; ४ दुःकंत राजा राज करता, न्यायमारग ठावए. ३ इक दिनि नरवर करीय उच्छाह, बाहरि वाहत वाहत वाहणी ए; परवर्यउ परगरि वनगिरि वेगि रंगि इछा रमइ मन तणी ए. मन तणीय करतु केलि, बइसतु छाया के (वे) लि; हसता हयवर हेलि, बोलता बंदि पिहिलि. ५ बोलई पहेली नइ समस्या, बंदि बहु बिरदावली; तव दूरि एक कुरंग दृष्टि देखि उठ्यउ नृप वली . रथि चडीय चडवड चपल चंप्पा, वन[ पवन] परि हय उछलई; असि कुंत तोमर तूण संधी, धणुह मुहि ताकइ बलई. ६ करई कुरंग तुरंग उनमाद, वाद वदंइ गति अणुसरी ए; छंडीय भूमि व पंथ बहु जांम, तांम पाम्या [प] वनहिं भरी ए. हय भर्या पवनहि जांम, मृग पूठि पहुता तांम; वन एक अति अभिराम, नृप धनुषि पूरइ वांम. ८ नृप धनुषि पूरी वाम प्राणहि, बांण मेल्हइ तसु जिमइ; रहउ रहउ राजन काज नही, ए कहइ तापस तिणि समइ. मुहि तृणउ घालइ, न्याय चालइ, रंगि मालइ वनि रहइ; नित्रांण हरवा [हणवा] बांण तांणइ, बांण प्राण किसुं वहइ. ९ राय अन्याय तणउ रखवाल, पाल पृथ्वी तणउ सहू कहइ ए; ए निरधार ऊपरि हथीयार-भार- सोभा केही लहइ ए. ए किसी लहीयई सोह, म-म करू राजन द्रोह; इक धरू धरमह मोह, छंडीयइ वयर - विरोह. ११ For Private & Personal Use Only ७ १० ३ www.jainelibrary.orgPage Navigation
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