Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 13
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 4
________________ जिसमें भी स्नात्रीय बने थे उन्हों के गौत्र है पर इनके सिवाय उपकेशपुर में तथा अन्य स्थानों में बसने वाले महाजनों के क्या क्या गोत्र होंगे उनका उल्लेख नहीं मिलता है तथापि सम्भव है कि इतने विशाल संघ में तथा तीन सौ वर्ष जितने लम्बे समय में कई गोत्र हुए ही होंगे । यदि खोज करने पर पता मिलेगा उनको भविष्य में प्रकाशित करवाया जायगा। उपरोक्त गोत्र एवं जातियों के अलावा भी जैनाचार्यों ने राज पूतादि जातियों की शुद्धि कर महाजन संघ (ओसवाल वंश) में शामिल मिला कर उसकी वृद्धि की थी जैसे कि-- १-आर्य गोत्र- लुनावत शाखा-वि. सं. ६८४ आचार्य देवगुप्तसूरि ने सिन्ध कारावगौसलभाटी को प्रतिबोध कर जैन वना कर ओसवंश में शामिल किया जिन्हों का खुर्शीनामा और धर्म कृत्य की नामावली जैन जाति महोदय द्वितीयखण्ड में दी जायगी- "खरतर गच्छीय यति रामलालजी ने महाजन वंश मुक्तावली पृष्ट ३३ में कल्पित कथा लिख वि० सं० १९८ में तथा यति श्रीशलजी ने वि० सं० ११७५ में जिनदत्त सूरि ने आर्य गोत्र बनाया घसीट मारा है। यह बिल. कुल गप्प है। इससे पांच सौ वर्षों के इतिहास का खून होता है। - २-भंडारी-वि. सं. १०३९ में आचार्य यशोभद्र सूरि ने नाडोल के राव लाखण का लघुभाई राव दुद्धको प्रतिबोध कर जैन बनाया । बाद माता श्राशापुरी के भण्डार का काम करने से भंडारी कहलाया जैतारण, सोजत और जोधपुर के भण्डारियों के पास अपना खुर्शीनाम आज भी विद्यमान है । "खरतर० यति रामलालजी ने म्हा० मुक्त० पृष्ठ ६९ पर लिखा है किं वि० सं० १४७८ में खरतराचार्य जिनभद्रसूरि ने नाडोल के राव लाखण के

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