Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 13
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 25
________________ ( २४ ) तौर पर कतिपय जातियों का बयान ऊपर लिखा है उसमें से एक भी जाति की अपने लिखी उत्पति को प्रमाणिक प्रमाणों द्वारा सत्य कर बतलावे वरना अपनी भूल को सुधार लें। ____ अन्त में मैं इतना ही कह कर मेरा लेख को समाप्त कर देना चाहता हूँ कि मैंने यह लेख खण्डन मण्डन की नीति से नहीं लिखा पर इतिहास को सुरक्षित एवं व्यवस्थित रखने की गरज से ही लिखा है और इसमें भी कारण भूत तो हमारे खरतर माई ही हैं यदि वे इस प्रकार भविष्य में भी प्रेरणा करते रहेंगे तो मुझे भी सेवा करने का शौभाग्य मिलता रहेगा । अस्तु । आशा है कि विद्वद् समाज इस से अवश्य लाभ उठावेंगा । नोट-मुझे इस समय खबर मिली है कि यतीजी ने 'महाजन वंश मुक्तावली' को कुछ सुधार के साथ द्वितीया वृत्ति छपवाई है यदि पुस्तक मिलगई तो उसको देख कर अवश्यकता हुई तो जैनजाति निर्गय की द्वितीया वृत्ति क्षीघ्र ही प्रकाशित करवाई नावगी जैन जाति निर्णय की सहायता से

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