Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 13
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 9
________________ ( ८ ) शाह हरखावत का समय वि० सं० १६३१ का है जिसको खरतरों ने वि० सं० ११६७ का बतलाया हैं इस जाति की उत्पत्ति के लिये तो खरतरों ने एक गप्पों का खजाना ही खोल दिया है पर क्या करें विचारे ! यतियों की इस प्रकार गप्पों पर कोई भी बाठिया शाह हरखावत कवाड़ विश्वास ही नहीं करते हैं । ८ - बोथरा - वि० सं० १०१३ में कोरंट गच्छाचार्य नन्नप्रभसूरि ने श्राबु के आस पास विहार कर बहुत से राजपूतों को प्रतिबोध कर जैन बनाये जिसमें मुख्य पुरुष राव धांधल चौहन था धांधल के पुत्र सुरजन-सुरजन के सांगण और सांगण के पुत्र राव बोहत्थ हुआ बोहत्थ ने चन्द्रावती में एक जैन मंदिर बनाया और श्री शत्रुंजय का विराट्रसंघ निकाल सर्व तीर्थों की यात्रा कर सोना की थाली और जनौर की लेन दी जिसमें सवा करोड़ द्रव्य खर्च हुआ अतः बोहत्थ की सन्तान से बोत्थरा कहलाये । " खरतर० यति रामलालजी ने महा० मुक्ता० पृष्ठ ५१ पर लिखा है कि जालौर का राजा सावंतसिंह देवाड़ा के दो राणियां थी एक का पुत्र सागर दूसरी का वीरमदेव, जालौर का राज वीरमदेव को मिला तब सागर अपनी माता को लेकर आबु अपना नाना राजा भीम पँवार के पास चला गया, राजा भीम ने आबु का राज सागर को दे दिया। उस समय चित्तौड़ का राणा रत्न सिंह पर मालवा का बादशाह फौज लेकर आया राणा ने आबु से सागर को मदद के लिये बुलाया, सागर बादशाह को पराजय कर मालवा छीन लिया। बाद गुजरात के बादशाह ने आबु पर आक्रमण किया सागर ने उसको हटा कर गुजरात भी छीन लिया ! बाद देहली का बादशाह गौरीशाह चितोड़ पर चढ़ आया फिर चितोड़ वालों ने सागर को बुलाया, सागर ने वहाँ आकर आपस में समझौता करवा कर बादशाह से २२ लाख रुपये दंड के लेकर मालवा- गुजरात वापिस दे दिया

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