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( २० ) कसौटी-जिनदत्तसूरि का देहान्त वि० सं० १२११ में हुआ उस समय पूर्व की यह घटना होगा । तब पुष्कर का तलाब वि० सं० १२१२ में प्रतिहार नाहाडराव ने खुदाया बाद कई अर्सा से गोहों पैदा हुई होगी इस दशा में जिनदत्त सरि के शिष्य ने स्त्री पुरुष को गोहों से कैसे बचाया होगा यह भी एक गप्प ही है।
१४-कोचर यह डिड् गौत्र की शाखा है और विक्रम की सोलहवी शताब्दी में मंडीर के डिडू गोत्रीय मेहपालजी का पुत्र कोचर था उसने राव सूजामी की अध्यक्षता में रह कर फलोदी शहर को आबाद किया कोचर जी की सन्तान कौचर कहलाई इसके मूल गौत्र डिडू है और इनके प्रतिवोधक वीरान ७० वर्षे आचार्य रत्नप्रभ सूरि ही थे।
"ख० य. रा. म. मु. पृ० ८३ पर इधर उधर की असम्बंधित पाते लिख कर कौचरों को पहले उपकेशगच्छीय फिर तपा गच्छीय और बाद खरतरे लिख है इतना ही नहीं बल्कि कई ऐसी अघटित बाते लिख कर इतिहास का खून भी कर डाला है।"
कसौटी- इस जाति के लिये देखो "जैन जाति निर्णय" नामक पुस्तक वहाँ बिस्तार से उल्लेख किया है । और कोचरों का उपकेश-गच्छ है।
१५-चोरडिया यह अदित्यनाग गौत्र की शाखा हैं अदित्यनाग गौत्र प्राचार्य रत्नप्रभ सूरि स्थापित महाजन वंश को अठारह शाखा में एक है।
ख. य० रा० म० मु. पृष्ट २३ पर लिखा है कि पूर्व देश में अंदेरी नगरी में राठोड़ राजा खरहत्य राज करता था उस समय यवन लोग काबली मुल्क लुट रहे थे राजा खरहत्थ अपने चार पुत्रों को लेकर वहाँ गया यवनों को भगा कर वापिस आया पर उनके चार पुत्र मुछित हो गये जिनदत्तसरि ने उन पुत्रों को अच्छा कर जैन बनाये ! इत्यादि