Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 13 Author(s): Gyansundar Maharaj Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala View full book textPage 2
________________ ओसवंश के गौत्र एवं जातियों की उत्पत्ति खरतरों का गप्प पुराण ( लेखक-केसरीचन्द चोरडिया ) ओसवाल यह उपकेश वंश का अपभ्रंश है और उपकेश वंश यह महाजन वंश का ही उपनाम है इसके स्थापक जैनाचार्य श्री रत्नप्रभसूरीश्वरजी महाराज हैं । आप श्रीमान भगवान पार्श्वनाथ के छट्टे पट्टधर थे और वीरात ७० वर्षे उपकेशपुर में क्षत्रीय वंशादि लाखों मनुष्यों को मांस मदिगदि कुव्यसन छुड़ा कर मंत्रों द्वारा उन्हों की शुद्धि कर वासक्षेप के विधि विधान से महाजन वंश की स्थापना की थी इस विषय का विस्तृत वर्णन के लिये देखो "महाजन वंश का इतिहास-" महाजन वंश का क्रमशः अभ्युदय एवं वृद्धि होती गई और कई प्रभावशाली नामाङ्कित पुरुषों के नाम एवं कई कारणों से गोत्र और जातियां भी बनती गई। महाजन संघ की स्थापना के बाद ३०३ अर्थात् वीर निर्माण के बाद ३७३ वर्षे उपकेशपुर में महावीर प्रतिमा के ग्रंथी छेद का एक बड़ा भारी उपद्रव हुआ जिसकी शान्ति आचार्यश्रीकक्कसूरिजी महाराज के अध्यक्षत्व में हुई उस समय निम्नलिखित १८ गोत्र के लोग स्नात्रीय बने थे जिन्हों का उल्लेख उपकेश गच्छ चरित्र में इस प्रकार से किया हुआ मिलता है उक्तंच।Page Navigation
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