Book Title: Prachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Author(s): Dinmanishreeji
Publisher: Dhanesh Pukhrajji Sakaria
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प्रकाशकनी कलमे
आ एक अलौकिक खजानो छ। प्राचीन महापुरुषोना मुखकमलमांथी नीकळेला अंतरना भाववाही शब्दो थी गुंथायेला, इहभव-परभवना अमुलख भाथा तुल्य नाना विध प्राचीन स्तुति-स्तवनचैत्यवंदनादिथी संग्रहायेलो रसथाळ छे। जेना आस्वादे मोहनीयादि आठे कर्मोना चुरा थई जाय छे । आत्माने सुरक्षित बनावी दे छे। तेवा आ रसथाळना सुप्रेरीका..........
जे वागड समुदायनी उज्वल परंपराने चलावनारा कच्छ वागड - भरुडीयानगरना प्रांगणे संयमरुपी कमल विकस्वर थतां बन्या परम ज्योतिर्विद पूज्य । दादाश्री पद्म विजयजी म० सा० ते नी पाट परंपरा ए जेमनुं संसारमाथी मन फरी गयुं ने कर्मरुपी मल्लने जय करनारा मनफरा नगरना प्रशांत संयममूर्ति पूज्य दादाश्री जीतविजयजी म० सा० तपधर्मना हीरने उजाळनारा एवा दादाश्री पूज्य हीर विजयजी म०सा० सुवर्णनी कान्ति समान सच्चारित्र चुडामणी दादा गुरुदेवश्री पू० कनक सूरी म० सा० ओसवाळ अने गुर्जरनी भोळी भद्रिक प्रजामां सम्यग् धर्मनुं बीज रोपनारा परम क्रियारुचि पू० दादाश्री देवेन्द्र सूरि म० सा० अकिंचनत्वना आदर्श समान संयम निष्ठ पूज्य गुरुदेवश्री कंचन वि० म० सा०, आजीवन समर्पित सहुमां प्रिय बनेला पूज्य उपा० प्रिती वि० म० सा०, कर्म विपाकने सरलभावे प्रसन्नवदने झीलनारा पू० दर्शन वि० म० सा० अने आवी उज्वलाती उज्वल परंपराना वाहक पुण्य पुरुष जैन जगतना खूणे-खूणे, हैये-हैये, दिले दिले वसी गयेला, अजोड भक्तिरसना प्रणेता, जंगमतीर्थ स्वरूप अध्यात्मयोगी पूज्यपाद सद्गुरुदेवश्री श्री वि० आ० भ० कलापूर्ण सूरीश्वरजी म० साना आज्ञानुवर्तीनी ५००-५०० साध्वीजी वृंदना मूलाधार स्वरूप, परमवात्सल्यजननी, महाप्रवर्तीनी श्री आणंद माणेक्यरत्न चतुर-निर्मळ निर्जराश्रीजी म० सा० तथा वडिल भगीनी अने गुरुदेवश्री प० पू०

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