Book Title: Pooja Sangraha Part 3
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६ 66 भाव अने दया आवे छे अने तेवा निन्दकोमाटे गुरुश्रीए भजन पद भाग ६ मां कहां छे के “ हमारुं पाप धुवो छो, बनी धोबी वगर पैसे, तमारा कर्ममां एवं, दया आवे तमारापर आ वाक्यनो विचार करनारने गुरुश्रीना अंतर्भावनानी खात्री थशे, एटलुंज नहि पण तद्भावना प्रमाणे दरेक मनुष्यो गुण ग्रहण करवा प्रयत्नवान बनशे एम इच्छीए छीए. गुरुश्रीनी प्रवृत्ति, रोमराये ज्यां त्यां महावीर प्रभुना गुण गावानी सेवाएली होय तेम प्रतिभासे छे. पूजाना रसिकजनो रुचि अनुसारे स्वाधिकार प्रमाणे गुण ग्रहवा प्रयत्नवान् बनो, भक्तो, भक्तिनी धूनमां लयलीन वनशे अने गुणदृष्टि धारण करशे एम इच्छी पछीए. आ ग्रंथनी अंदर प्रथम भागनी पूजाओ तथा प्रस्तावना वगेरे दाखल करवामां आवेल छे. जे आवा उपयोगी ग्रंथ साथै सचवाइ रहे तेहेतुथीज आ ग्रंथ साथेज जोडवामां आवेल छे.. आ ग्रन्थ छपाववामां पेथापुरना निवासी सद्गत शेठ. मनसुखलाल ललुभाइए रु.१२०० ) सहाय तरीके पांचसो नकलो छपाववा माटे आप्या छे तेमज मेहसाणानिवासी शेठ डाह्याभाई घेलाभाइए पोताना सद्गत भाइ अमथालाल घहेलाभाइना स्मरणार्थे रु.१२०० ) नी सहाय पांचसो नकलो छपाववा माटे आपी छे. जे माटे बने भा इओनो अंतःकरण पूर्वक आभार मानी तेओने तथा तेओना कार्य कर्ता शेठ. डाह्याभाइ तथा श्राविका माणेक बेन वगेरेने धन्यवाद आपवामां आवे छे तेमज सद्गतबंधुओना अत्र जीवनवृत्तांतो तथा फोटोओ आपवामां आवेला छे. सहाय करती वखते तेओए आ ग्रंथमां गुरुश्रीनी छबी मूकवा माटे तेमने नम्र विनंति करेली अने तेपरथी गुरुश्रीने अमोए पण मान भरेली भक्तिनो स्वीकार करवानी नम्र विनंति करेल पण तेओश्रीए ते विनंति स्वीकारी नहोती पण अमोए भक्तिथी छवी मूकी छे. आ ग्रंथमां जीवन For Private And Personal Use Only ""

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