Book Title: Patrimarg Pradipika Author(s): Mahadev Sharma, Shreenivas Sharma Publisher: Kshemraj Krishnadas View full book textPage 4
________________ भूमिका। 10 पाठक महाशयो!जिस सर्वमान्य वेदचक्षु ज्योतिषशास्त्रके द्वारा मनुष्योंका भूत, भविष्य, वर्तमान शुभाशुभ फलज्ञान, जन्मपत्र द्वारा होता है, उसी जन्मपत्रके गणितके प्राचीन तथा अर्वाचीन अनेक ग्रन्थ प्रस्तुत हैं परन्तु विशेष परिश्रम व परिज्ञान विना उन ग्रन्थों सर्व साधारण तथा विशेषकर बालकोंसे भलीभांति सुगमतापूर्वक गणित नहीं हो सकता, यही सोचकर मेरे परमपूज्यपाद पिताजी श्री श्री ६ श्रीदैवज्ञवर्य, श्रीमहादेवजी महाराजने अनेक प्राचीन ग्रन्थोंका सारांश लेके थोड़े ही परिश्रमसे भलीभांति जन्मपत्रका गणित बनानेके योग्य हो जाय ऐसा यह "पत्रीमार्गप्रदीपिका" नामक छोटासा ग्रन्थ निर्माण कर अपने द्रव्यसे मुद्रित कराकर विना मूल्य विद्वज्जनोंकी सेवामें समर्पण किया था किंतु ईश्वरकी कृपासे थोड़े ही दिनोंमें इसका इतना आदर जनसमुदायमें हुआ कि कई यन्वाधीश उपयोगी समझ छापनेके लिये आग्रह करने लगे परंतु मेरे पूज्यपाद पिताजीने श्रीमान् खेमराजजी सेठसे अधिक स्नेह होनेके कारण उन्हींको छापनका स्वत्व दिया, जिसकी आजतक कई आवृत्तियां छप चुकी हैं सो पाठकोंको विदित ही है. इस ग्रंथकी भाषाटीका करने बावत मेरे कई मित्रोंका कितने ही दिनोंस इस प्रकारका आग्रह था कि यदि ऐसे उपयोगी ग्रन्थकी पूर्ण रीतिसं भाषाटीका बनायी जाकर इसमें अन्यान्य आवश्यक विषयोंका समावेश भी किया जाय तो यह ग्रंथ बालकोंको विशेष उपयोगी होगा,एसी २ कई प्रकारकी उत्तम उत्तेजनाओंसे उत्तेजित हो आज मैं ( अल्पज्ञ) इसीकी सरल हिन्दीभाषाटीका तथा उदाहरण तथा आवश्यक आवश्यक स्थानोंकी टिप्पणी, और भी जिन जो उपयोगी विशेष कोष्ठकोंकी इसमें आवश्यकता थी उनका भी समावेश करके आप लोगोंके दृष्टिगोचर करानेको उद्यत हुआ हूं। सो, इसमें कहीं दृष्टिदोषसे वा लेख प्रमादसे किसी प्रकारकी त्रुटि रही हो तो विद्वज्जन कृपादृष्टिसे सुधारके अशुद्धियोंमें हास्य न करते शुद्धार्थ से संतुष्ट हो मेरे परिश्रमको सफल करेंगे यही सविनय निवेदन है। इस ग्रन्थका समग्र अधिकार मैं प्रसन्नतापूर्वक श्रीमान् मान्यवर सेठ श्रीकृष्णदासात्मज-खेमराजजी "श्रीवेङ्कटेश्वर' 'स्टीम् प्रेसाध्यक्षको देता हूं कि जिन्होंने इस ग्रन्थको परम प्रसन्नतासे सुन्दर छापनेका आग्रह दिखाके मेरा उत्साह बढ़ानेकी उदारता दिखायी, इसका मैं उन्हें धन्यवाद भी देता हूं। भवदीय-- ज्यौ० श्रीनिवास मदादेवजी शर्मा रतलाम. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 162