Book Title: Pandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 4
________________ Far गोम्मटसार की रचना धरसेनाचार्य के शिष्यों - प्राचार्य भूतबलि और पुष्पदन्त द्वारा रचित घट्खण्डागम नामक प्राकृत गाथाओं में निबद्ध ग्रंथ के आधार पर हुई है। षट्खण्डागम ग्रंथ के आशय को संक्षेप में सुस्पष्ट रूप से प्रस्तुत करना गोम्मटसार के रचयिता नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवती का लक्ष्य था। तब से विगत एक हजार वर्षों से गोम्मटसार, समयसार के समान ही महत्त्व पाता रहा है। षट्खण्डागम दिगम्बर जैन सम्प्रदाय की सर्वाधिक प्राचीन सैद्धान्तिक रचना है । इसका नामोल्लेख तो जैन विद्वान् करते पाए थे और किसी ने क्वचित्कदाचित् इसका पठन-पाठन भी किया हो, किन्तु इसकी विस्तृत चर्चा गोम्मटसार के पश्चात् कभी नहीं हुई। गोम्मटसार की रचना के पश्चात् इसका पठन-पाठन बन्द-सा होगया। हर्ष का विषय है कि अब यह 'षट्खण्डागम' स्वर्गीय डॉ० हीरालाल जैन के संपादकत्व में प्रकाशित होकर सम्मुख आ गया है, जिससे इसकी मान्यताओं और सिद्धान्तों के आलोक में गोम्मटसार का पठन-पाठन संभवतः एक नया मोड़ ले । ऊपर लिखा जा चुका है कि पं० टोडरमलजी से लगभग ५०० वर्ष पूर्व गोम्मटसार का पठन-पाठन बन्द-सा हो गया था। ध्यातव्य है कि स्वयं पं० टोडरमलजी ने षट्स्खण्डागम की प्रति, जो दक्षिण भारत के जैनबद्री नामक स्थान पर थी, प्राप्त करने का बहुत प्रयास किया था; उन्होंने इस हेतु पांच-सात जैन-मुमुक्षुत्रों को भी भेजा था किन्तु दुर्भाग्य से वे सफल नहीं हो सके थे। यदि वह प्रति पंडितजी को प्राप्त हो जाती, तो संभवत: इस पर भी वे टीका लिखते। इस अनुमान की पुष्टि इससे होती है कि उन्होंने गोम्मटसार पर टीका लिखी है। हो सकता है कि पंडितजी समयसार पर भी ऐसी ही टीका लिखते, जैसा कि उनके समकालीन सहयोगी ब्र. रायमलजी के इस कथन से स्पष्ट है - "और पांच-सात ग्रन्यां की टीका वरणायवे का उपाय है सो आयु की अधिकता हूवां वरणेगा" (प्रस्तुत ग्रंथ, पृष्ठ ५०)। उल्लेखनीय है कि समयसार में प्रमुख विषयवस्तु शुद्ध प्रास्मा का निरूपण है, जबकि गोम्मटसार में परिवर्तनशील तत्त्वों-विकारी और अविकारी पर्यायों की विवेचना है। इन दोनों शास्त्रों की गहन विवेचनात्रों को पढ़ कर ऐसी भी धारणा बन सकती है कि दोनों के मस.TFITS

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