Book Title: Pandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva Author(s): Hukamchand Bharilla Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 2
________________ | डॉ. होरालरस माहेश्वरी भूमिका एम.ए., एल-एल.बी., डी.फ़िल् , डी.लिट्. प्राध्यापक, हिन्दी विभाग, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर हिन्दी साहित्य का एक बहुत बड़ा भाग धार्मिक साहित्य के रूप में है। धार्मिक साहित्य को दो रूपों में देखा जा सकता है :(१) दार्शनिक, वैचारिक और धर्माचरण मूलक साहित्य, जिसे चिन्तनपरक साहित्य कह सकते हैं, तथा (२) इनकी प्रेरणा से निर्मित साहित्य, जिसमें मानवानुभूतियों का अनेकरूपेण चित्रणवर्णन रहता है । विद्वानों ने शुद्ध साहित्य के अन्तर्गत विवेचनीय, दूसरी सीमा में पाने वाले साहित्य को माना है। परन्तु जब साहित्य का इतिहास लिखा जाता है, तो धर्म और दर्शन से प्रभावित साहित्य को प्रेरणा देने वाले विभिन्न चिन्तन-विन्दुओं, चिन्ता-धाराओं और दार्शनिक प्रणालियों का आकलन और समानान्तर प्रवाह का लेखा-जोखा करना आवश्यक हो जाता है। प्रायः सभी भारतीय भाषाओं के साहित्यों के इतिहास-लेखन में यह बात स्पष्ट दिखाई देती है। यही कारण है कि विभिन्न सम्प्रदायों से सम्बन्धित साहित्यों पर कार्य करते समय विद्वानी ने तत्सम्बन्धी दार्शनिक और वैचारिक स्वरूप का स्पष्टीकरण किया है। अष्टछाप और पुष्टिमार्ग, राधावल्लभ सम्प्रदाय आदि से सम्बन्धित कार्य इसके प्रमाण हैं। यही नहीं, विभिन्न कवियों और सन्त-भक्तों के केवल दार्शनिक विचारों का भी अध्ययन-मनन प्रस्तुत किया गया है, जैसे-कबीर, तुलसीदास, सन्त कवि दरिया प्रादि-आदि । साहित्यिक शोध के परिणामस्वरूप जो भी ज्ञान-किरण प्रसरित और पालोकित होती है, वह किसी न किसी रूप में हमारे ज्ञान क्षितिज का विस्तार करती है।Page Navigation
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