Book Title: Panchastikay Part 01 Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy View full book textPage 9
________________ द्रव्य तो अस्तित्व ही है। द्रव्य के विविध लक्षणों में से एक लक्षण सब पदार्थों में स्थित अस्तित्व है। सत्ता/अस्तित्व द्रव्य का स्वभाव है। द्रव्य की परिणमनशीलता के कारण पर्यायें उत्पन्न और विनष्ट होती हैं। आचार्य कहते हैं कि सामान्य सत्ता सब पदार्थों में स्थित है, उनके नाना स्वरूपों में विद्यमान है, उनकी अनन्त पर्यायों में है। उन पर्यायों की उत्पत्ति और व्यय में तथा उन ध्रुव पदार्थों में है। विशेष सत्ता विशिष्ट पदार्थों में स्थित है। उसके नाना स्वरूपों में विद्यमान है। उसकी पर्यायों में है। उस एक पर्याय की उत्पत्ति उसके व्यय में तथा उस ध्रुव पदार्थ में है। द्रव्य, गुण और पर्यायः ___द्रव्य सत् लक्षणवाला है, उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य से युक्त है तथा गुणपर्याय का आधार है। दूसरे शब्दों में, द्रव्य की उत्पत्ति अथवा विनाश नहीं है, किन्तु द्रव्य का अस्तित्व है। पर्यायें उसमें ही उत्पाद, व्यय और ध्रौव्यता को करती है। फलस्वरूप पर्याय-रहित द्रव्य नहीं है और द्रव्य-रहित पर्याय नहीं है, द्रव्य और पर्याय अपृथकता से युक्त है। इसी प्रकार, द्रव्य के बिना गुण नहीं है और गुण के बिना द्रव्य नहीं है, द्रव्य और गुणों में अपृथकता है। कहा जा सकता है कि सत् पदार्थ का नाश नहीं है, असत् पदार्थ की उत्पत्ति नहीं है, पदार्थ गुणपर्यायों में ही उत्पाद-व्यय करते हैं। आचार्य कुन्दकुन्द के अनुसार द्रव्य और गुण में अविभाजित अपृथकता है। उनमें धन और धनी की तरह प्रदेश-भिन्नता नहीं है किन्तु ज्ञान और ज्ञानी की तरह प्रदेश-एकता है। कहने का अभिप्राय है कि उनमें विभाजित पृथकता और तादात्म्य को स्वीकार नहीं किया गया है। द्रव्य और गुण प्रदेश-रूप से अपृथक होते हुए भी नाम, संरचना, संख्या और उद्देश्य के दृष्टिकोण से पृथक है। अपृथकता में ये पृथकताएँ ( 2 ) पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकारPage Navigation
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