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‘पंचास्तिकाय' का हिन्दी अनुवाद अत्यन्त सहज, सुबोध एवं नवीन शैली में किया गया है जो पाठकों के लिए अत्यन्त उपयोगी होगा। इसमें गाथाओं के शब्दों का अर्थ व अन्वय दिया गया है। इसके पश्चात संज्ञा-कोश, क्रियाकोश, कृदन्त-कोश, विशेषण-कोश, सर्वनाम-कोश, अव्यय-कोश दिया गया है। पाठक ‘पंचास्तिकाय' के माध्यम से शौरसेनी प्राकृत भाषा व जैनधर्म-दर्शन का समुचित ज्ञान प्राप्त कर सकेंगे, ऐसी आशा है।
प्रस्तुत कृति के दो अधिकारों में से 'द्रव्य-अधिकार' प्रकाशित किया जा रहा है। जैन दार्शनिक साहित्य को आसानी से समझने और प्राकृत-अपभ्रंश की पाण्डुलिपियों के सम्पादन में पंचास्तिकाय का विषय सहायक होगा। श्रीमती शकुन्तला जैन, एम.फिल. ने बड़े परिश्रम से प्राकृत भाषा सीखने-समझने के इच्छुक अध्ययनार्थियों के लिए पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार' का हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया है। अतः वे हमारी बधाई की पात्र हैं।
पुस्तक-प्रकाशन के लिए अपभ्रंश साहित्य अकादमी के विद्वानों विशेषतया श्रीमती शकुन्तला जैन के आभारी हैं जिन्होंने पंचास्तिकाय(खण्ड1) द्रव्य-अधिकार'का हिन्दी-अनुवाद करके जैन दर्शन व शौरसेनी प्राकृत के पठन-पाठन को सुगम बनाने का प्रयास किया है। पृष्ठ संयोजन के लिए फ्रेण्ड्स कम्प्यूटर्स एवं मुद्रण के लिए जयपुर प्रिण्टर्स धन्यवादार्ह है।
___ मंत्री
न्यायाधिपति नरेन्द्र मोहन कासलीवाल महेन्द्र कुमार पाटनी डॉ. कमलचन्द सोगाणी अध्यक्ष
संयोजक प्रबन्धकारिणी कमेटी
जैनविद्या संस्थान समिति दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी जयपुर
वीर निर्वाण संवत्-2540
3.08.2014
(vi)