Book Title: Panchastikay Part 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 8
________________ ग्रन्थ एवं ग्रन्थकार संपादक की कलम से आचार्य कुन्दकुन्द के अनुसार जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश (पंचहं समवाओ) तथा काल (समयो) से लोक निर्मित है। लोक के बाद परिमाण-रहित (अमिओ) अलोक (अलोओ) नामक आकाश (खं) है। लोक के ये घटक अस्तित्व स्वभाववाले हैं, परिणमन - लक्षण - युक्त होते हुए शाश्वत हैं तथा गुण-पर्यायसहित है, इसलिए द्रव्य कहे जा सकते हैं। ये घटक किसी से संरचित नहीं है (अमया) और लोक के आधार हैं। इस लोक में जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और आकाश ये पाँच द्रव्य बहुप्रदेशी हैं, इसलिए अस्तिकाय कहे जाते हैं। काल द्रव्य बहुप्रदेशी नहीं है इसलिये अस्तिकाय नहीं है। आचार्य का कथन है कि यद्यपि ये सभी द्रव्य एक दूसरे में प्रवेश करते हैं, एक दूसरे के लिए स्थान देते हैं और सदैव मिलते हैं, किन्तु अपने स्वभाव को नहीं छोड़ते हैं। यहाँ यह कहना अप्रासंगिक नहीं होगा कि द्रव्यों में परिणमन का निमित्त काल है जो स्वयं अमूर्त और वर्तनालक्षणवाला (स्वयं परिणमनशील) है। यह द्रव्य काल स्वाधीन/शाश्वत है । काल की पर्यायें समय, दिन-रात, मास, वर्ष आदि पराधीन है, नश्वर हैं। द्रव्य और सत्ता / अस्तित्वः द्रव्य स्वयं सत्ता है। द्रव्य कि उत्पत्ति तथा विनाश नहीं होता है, किन्तु पंचास्तिकाय ( खण्ड - 1 ) द्रव्य - अधिकार (1)

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