Book Title: Panch sutrakam with Tika
Author(s): Chirantanacharya, Haribhadrasuri, Jambuvijay, Dharmachandvijay, V M Kulkarni
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 160
________________ द्वितीयं परिशिष्टम् । ४५ ७० o mds धम्मोवओगाओ निकलकत्थसाहिया निच्छयंगभावेण निच्छयमयं निदंसणं निष्फाए निम्मविज्जंति नियत्तगहदुक्खे नियत्तमाणवेयणे नियत्तमाणिहवियोगाइवेयणे नियमगामिणो नियमघाई नियमपलयं नियमविणासगे निरइआरपारगे निरइयारा निरइयारो निरणुबंधासुहकम्मभावेण निरवसेस निरवाए निरवेस्खा निरासंसो निरुद्धनहिच्छाचारे निरुद्धपमायचारे निविण्णे निविण्णो निसरगपवित्तिभावण निस्सेयस साहिगा पउमाइणिदंसणा पंचविहायारजाणगा पंचसमिए पंचसुत्तं पगिढ़तयणुबंधे पगिडभावज्जियं पचासण्णी पडिमाजोग्गदारूणिर्दसणेणं Mmwww.pr 02. FK पडिवत्तिमत्तं पडिवत्तिरूवा पडिवन्नधम्मगुणारिहं पडिसोयगामी पढमाणस्स पढियव्वं पणवाबाहा पयइसुंदर परं परत्थं परपरत्थसाहए परपीडं परम परमकल्लाणहे. परमकल्लाणा परमकल्लाणाणं परमकारुणिगे परमगुणजुत्त परमगुरुवीयरागाणं परमगुरुसंजोगो परमतिलोगणाहा परमत्थहे उत्तं परमबंभे परममंतो परममुणिसासणं परमलद्धीओ परमसंबोहीए परमसुहसागे परमाणंदहेऊ परिकप्पियाए परिणामभेया परिणाए परिनिव्वाइ परिपोसिज्जंति परियारणं परिवारस्स परिसुद्धकायकिरिए १० २२ .. २८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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