Book Title: Panch Kalyanak Kya Kyo Kaise Author(s): Rakesh Jain Publisher: Tirthdham Mangalayatan View full book textPage 7
________________ प्राक्कथन पञ्च-कल्याणक महा-महोत्सव दिगम्बर जैन समाज का सर्वाधिक लोकप्रिय उत्सव है। इस महोत्सव में उन मुक्ति-साधक महान आत्माओं की गर्भवास से लेकर मुक्ति प्राप्ति तक की घटनाओं का स्थापना-निक्षेप के आधार पर प्रदर्शन किया जाता है, जो तीर्थकर होते हैं। यह सम्पूर्ण प्रदर्शन राग से विरागता और अपूर्णता से पूर्णता के शाश्वत् मार्ग का परिचायक है। सनातन नियमानुसार अनादि-अनन्त काल प्रवाह के चौथे काल में चौबीस तीर्थङ्करों का जन्म होता है और वे अपनी पूर्वभव से आराधित आराधना की पूर्णता इस भव में प्राप्त करते हैं। पूर्व भवों में ही आन्तरिक वीतराग परिणति के साथ-साथ उनकी परिणति में लोकमाङ्गल्य की करुण सरिता प्रवाहित होती है, जिसके फलस्वरूप उन्हें सर्वोत्कृष्ट पुण्य प्रकृति तीर्थङ्कर नामकर्म का बन्ध होता है। यद्यपि वे धर्मात्मा उस पुण्यभाव और तीर्थङ्कर प्रकृति के प्रति किञ्चित् भी व्यामोहित नहीं होते, वे उसके प्रति उपेक्षाभाव ही रखते हैं; तथापि उनकी उपेक्षित प्रकृति भी लोककल्याण की अद्भुत निमित्त बन जाती है। उन महापुरुषों के जीवन की पाँच प्रमुख घटनाएँ - गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान और मोक्ष कल्याणस्वरूप और कल्याणकारक होने से कल्याणक कहलाती है और सम्पूर्ण घटनाएँ पाँच होने से पञ्च कल्याणक कहलाती हैं। यद्यपि गर्भ में आना और जन्म लेना तो कलङ्क है, तथापि जिस गर्भवास और जन्म के बाद सदा के लिए जन्म-मरण से छुटकारा प्राप्त होजाए, उस गर्भऔर जन्म कोभी कल्याणक कहा जाता है। जैन पुराणों में प्राप्त इन तीर्थङ्करों की गौरव गाथाएँ बतलाती है कि इन महापुरुषों ने भी अपने पूर्वभवों में आत्मस्वभाव की विराधनारूप मिथ्यात्व के 1567Page Navigation
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