Book Title: Panch Kalyanak Kya Kyo Kaise
Author(s): Rakesh Jain
Publisher: Tirthdham Mangalayatan

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Page 15
________________ भगवान आदिनाथ हुए और चौबीसवें तीर्थकर भगवान महावीर हुए हैं। सामान्यतः जन सामान्य में यह धारणा प्रचलित है कि भगवान महावीर जैन धर्म के संस्थापक थे। जबकि वस्तुस्थिति इससे एकदम विपरीत है। भगवान महावीर तो इस काल की चौबीसी के अन्तिम तीर्थङ्कर हैं, प्रथम तीर्थङ्कर तो भगवान आदिनाथ ही हैं। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि आदिनाथ से महावीर की यह परम्परा मात्र इस कल्पकाल की ही परम्परा है। ऐसे-ऐसे अनन्त कल्प काल व्यतीत हो चुके हैं और आगे भी होंगे, जिनमें प्रत्येक कल्प काल में चौबीस-चौबीस तीर्थङ्कर होंगे। इस समीचीन तथ्य से परिचति कराना भी इस आयोजन का उद्देश्य है। प्रश्न 5 - सामान्यतया सभी पञ्च-कल्याणकों में सब कुछ वही का वही होता है, इस पञ्च-कल्याणक की क्या विशेषता है? उत्तर - यह तीर्थङ्कर प्रकृति का महाप्रताप है कि भरतक्षेत्र आदि में उत्पन्न होनेवाले तीर्थङ्कर के पञ्च-कल्याणक होते हैं,जिन्हें स्वर्ग से आकर इन्द्र आदि देवतागण मनाते हैं; अत: उन्हीं क्रियाओं को हम भी प्रदर्शित करेंगे परन्तु इससे यहाँ विशेष छटा के दर्शन आपको होंगे। इसकी तैयारी यहाँ विगत डेढ़ वर्ष से चल रही हैं। प्रश्न 6 -आचार्य अनुज्ञा का क्या महत्त्व है। उत्तर - पञ्च-कल्याणक प्रतिष्ठा का मुख्य कर्णधार प्रतिष्ठाचार्य को माना गया है; अतः कार्यक्रम के प्रारम्भ में 'आचार्य अनुज्ञा' के द्वारा प्रतिष्ठाचार्य से यजमान, यज्ञनायक अथवा प्रतिष्ठाकारक व्यक्ति या समाज निवेदन करती है और प्रतिष्ठाचार्य प्रतिष्ठा करने हेतु स्वीकृति प्रदान करते हैं। प्रतिष्ठा 1214]

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