Book Title: Panch Kalyanak Kya Kyo Kaise
Author(s): Rakesh Jain
Publisher: Tirthdham Mangalayatan

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Page 32
________________ अद्भुत माहात्म्य है, जिनवाणी में मन्त्र का शुद्ध जाप करने से उत्कृष्ट पुण्य का बन्ध लिखा है। मन्त्र की शुद्धि और उसका शुद्ध उच्चारण अति आवश्यक है। श्रुतपञ्चमी पर्व की कथा में वर्णन आता है कि परमपूज्य धरसेनाचार्य ने अपने दो मुनिराज शिष्यों की परीक्षा हेतु दोनों को अलग-अलग दो मन्त्र दिये थे और कहा कि इनकी साधना करो। दोनों मुनिराजों ने साधना की और देखा कि कुरूप देवियाँ प्रकट हुईं; कारण आचार्यदेव ने परीक्षा हेतु एक मन्त्र में एक मात्रा अधिक रखी थी तथा दूसरे मन्त्र में एक मात्रा कम। तब दोनों मुनिराजों ने संशोधन कर मन्त्रों का जाप किया तो सर्वाङ्ग सुन्दरी देवियाँ प्रकट हुईं।' जिनेन्द्रदेव का यह महामङ्गल महोत्सव, मात्र जनरञ्जनमनोरञ्जन का विषय नहीं है; अपितु आत्मकल्याणक के साथ-साथ उस महान परम्परा को आगे बढ़ानेवाला है, जिसका उद्गम हजारों वर्ष पूर्व महान वीतरागी सन्तों द्वारा विधि-विधान के माध्यम से हुआ है। धातु या पाषाण से निर्मित प्रतिष्ठित हुए वीतराग जिनेन्द्र प्रतिमा के दर्शन -पूजन से भव्यजीवों को दिव्यध्वनि के अलावा वैसा ही धर्मलाभ प्राप्त होता है, जैसा समवसरण में विराजमान तीर्थङ्कर परमात्मा के दर्शन से प्राप्त होता है, इसीलिए तो कहा है - 'जिन-प्रतिमा जिनवर -सी कहिये।

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