Book Title: Panch Kalyanak Kya Kyo Kaise
Author(s): Rakesh Jain
Publisher: Tirthdham Mangalayatan

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Page 31
________________ अनेक साधर्मी भाई इस महोत्सव के अन्तर्गत होनेवाले अध्यात्मरस से भरपूर तात्त्विक एवं वैराग्यमय सांस्कृतिक कार्यक्रमों को देखकर तथा अनेक सङ्गीतप्रेमी भाई-बहिन इसके अद्भुत -प्रासङ्गिक एवं आध्यात्मिक मधुर भक्ति गीतों को सुनकर अपनी-अपनी योग्यतानुसार धर्म प्राप्ति करते हैं। ऐसे महान प्रसङ्गों में शामिल होकर मन्दकषाय के परिणामों द्वारा पुण्य उपार्जन करना तो बहुत सामान्य बात है। अनेक कोमलमति बालक भी इन मनमोहक कार्यक्रमों को देखकर धार्मिक संस्कारों को पुष्ट करते हैं तथा जो पहली बार ही पञ्च-कल्याणक महोत्सव देखने आते हैं, वे भी धार्मिक संस्कारों को प्राप्त करते हैं और धन्य हैं वे जीव, जो अपनी परिणति में से दुर्व्यसनों को दूर कर सदाचारमय जीवन का निर्माण कर, स्वाध्याय की प्रेरणा पा कर, जिनवाणी में अवगाहन कर, तत्त्वज्ञानरूपी ज्ञानगङ्गा में डूबकी लगा कर, स्वानुभव द्वारा आनन्दामृत का पान कर, जीवन को निहाल कर लेते हैं। सर्व प्रथम तो पञ्च-कल्याणक की तिथि शुद्ध हो, अर्थात् पञ्चाङ्ग शुद्धि – तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण हों, मान -अभिमान न हो; जहाँ हृदय में त्याग-तपस्या हो, निर्लोभपना हो, वहाँ विघ्न कैसा? वह कार्य तो निर्विघ्न ही होगा। पञ्च-कल्याणक महोत्सव की सबसे पहली क्रिया है - शान्तिजाप का प्रारम्भ । शान्तिजाप में जो मन्त्र आचार्यों ने बताये हैं, उनका उच्चारण शुद्ध हो - यह सर्व प्रथम ध्यान देने योग्य है। यद्यपि प्रतिष्ठा ग्रन्थों में सवा लाख जाप करने का उल्लेख है किन्तु यदि शुद्ध उच्चारण एवं संयमित जीवन और शुद्ध भोजनवाले भाई पर्याप्त संख्या में न मिले तो जाप कम भी हो सकते हैं। मन्त्रों का 15307

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