Book Title: Palliwal Jain Itihas
Author(s): Pritam Singhvi, Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainattva Jagaran

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Page 14
________________ पल्लीवाल जाति की उत्पत्ति वर्तमान में जितनी जातियां हैं उनके नाम प्रायः धंधा, स्थान, प्रदेश, परनगर-ग्राम के पीछे पड़े हए ही अधिक मितले हैं। जिन में वैश्य जातियों के नाम तो प्रायः उक्त प्रकार ही प्रसिद्धि में आये हैं। श्रीमालपुर के श्रीमाली, खंडेला के खंडेलवाल, ओसिया के ओसवाल आदि बारह अथवा तेरह जातियों में प्रायः सर्वनाम ग्राम और प्रांतों की प्रसिद्धि को लेकर ही चलते हैं। पाली से पल्ली जाति की उत्पत्ति मानी जाती है। पाली और पल्लीवाल निबंध में इन दोनों के पारस्परिक संबंध के विषय में यथा प्राप्त एवं यथा संभव लिखा जा चुका है। कुछ विचारक जैन पल्लीवाल जाति और उसमें भी दिगंबर पंडित पल्लीवाल जाति को समक्ष रखकर पाली से पल्लीवाल जाति का निकास अथवा उसकी उत्पत्ति स्वीकार करने की तैयार नहीं है। परंतु वे इसकी उत्पत्ति अन्य जातियों के समान कहाँ से स्वीकार करते हैं? उसका उनके पास कोई उत्तर अथवा आधार नहीं है। ऐसी स्थिति में पाली से ही पल्लीवाल जाति उत्पन्न हुई मानना अधिक समीचीन है। श्वेतांबर ग्रंथों में तो पाली और पल्लीवाल गच्छ एवं जाति के प्रगाढ़ संबंध की दिखाने वाले कई प्रमाण उपलब्ध हैं जो प्रस्तुत इस लघु इतिहास में भी यत्र-तत्र आ गये हैं। पाली की प्राचीनता के साथ पल्लीवाल जाति की ‘पल्लीवाल' नाम से प्रसिद्ध होने की बात समानांतर सिद्ध नहीं की जा सकती। पाली नगर का नाम पाली क्यों पड़ा? आदि बातों को प्रमाणों से सिद्ध करना कठिन है। ‘पाली' का एक अर्थ तरल पदार्थ निकालने का, एक बर्तन विशेष जो पली, पला और पल्ली कहलाते हैं। दूसरा अर्थ है - ओढने, बिछाने अथवा अन्न, कपास की गांठ बांधने की चद्दरपल्ली। तीसरा अर्थ है - पक्ष, चौथा अर्थ है- छोटा ग्राम और पाँचवाँ अर्थ है अनाज नापने का एक प्रकार का पात्र जिसे जालोर, भीनमाल, जसवंतपुरा और सांचोर के प्रांगणों में पाली, पायली कहते हैं। आज भी वहां अन्न इसी पायलीमाप से ही मापा जाता है जो मणों में पूरी उतरती है। चार पायली का एक मण। चार मण की एक सी और इसी प्रकार आगे भी माप है। अनुमानतः चार पायली अन्न का तोल लगभग साढ़े पाँच सेर बंगाली बैठता है। यह पाली अथवा पायली माप ही पाली के नाम का कारण बना हो तो कोई आश्चर्य की बात नहीं । पाली में और उसके समीपवर्ती भागों में अधिकांश बाजरे की कृषि होने के कारण इस तोल की ख्याति के पीछे ‘पाली' नाम वर्तमान् पाली का पड़ गया हो, परंतु यह भी अनुमान ही है। परंतु इस में तनिक सत्यता का आभास होता है। पाली में अन्न प्रचुरता से होता था और उसको पाली अथवा पायली से मापा जाता था अतः पाली से मापने - 140 =श्री पल्लीवाल जैन इतिहास

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