Book Title: Palliwal Jain Itihas
Author(s): Pritam Singhvi, Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainattva Jagaran

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Page 23
________________ अवश्य सत्य है कि पल्लीवाल कहे जाने वाले आज के ब्राह्मण अधिक से अधिक संख्या में पाली में ही बसते थे और वैश्यों में भी कई अति समृद्ध घर तो व्यापार करते थे और शेष कृषि का कार्य करते थे। पाली की समस्त कृषि योग्य भूमि पर ब्राह्मणों का एक छत्र अधिकार था। अन्य कृषक जातियों के अधिकार में कृषि योग्य भूमि नाम मात्र की थी। राज्याधिकारियों ने ब्राह्मण कुलों से भूमि लेकर अन्य कृषक लोगों को देने का प्रयत्न किया, इस कारण ब्राह्मण कुल के लोग अप्रसन्न होकर संगठित रूप से पाली का त्याग कर के चले गये हों। यह कारण इसलिए अधिक माना जा सकता है कि प्राचीन काल में ब्राह्मण कृषि कर नहीं देते थे और प्रायः राजागण भी इनसे कोई कर नहीं लिया करते थे। पाली जैसे समृद्ध व्यवसायी नगर पर राज्य को व्यय अधिक करना पड़ता ही था और उसके बदले में अगर कुछ भी आय न हो तो यह अधिक समय तक सहनीय भी नहीं हो सकता था। इस स्थिति में राज्य ने ब्राह्मण कुलों से जमीन ले ले कर अन्य कर देने वाले कृषक कुलों को देना प्रारंभ किया हो और इन कृषक ब्राह्मण कुलों ने अपने साथी वैश्य कुलों से इस हानि की पूर्ति में सहानुभूति चाही हो और वे भी उनके पोषण के लिये सदैव रीति से अधिक सहाय करने को तैयार न हुए या बल्कि उल्टे उनके पोषण के भार को कम करने की सोचते रहे हों। इस कारण ब्राह्मण और राज्य तथा ब्राह्मण और वैश्यों का आपस में तनाव बढ़ गया हो, जिस के फलस्वरूप ब्राह्मण कुल के लोग पाली को त्याग कर निकल चले हों, यह मानना संभव है। पल्लीवाल वैश्यों द्वारा पाली के त्याग का तो कोई प्रश्न ही नहीं उठता। इतना अवश्य माना जा सकता है कि ब्राह्मण कुलों की सहानुभूति में इन वैश्य कुल में से अधिक अथवा न्यून लोगों ने पाली का त्याग किया हो और अन्यत्र जाकर बस गये हों। यह संभव हो सकता है क्योंकि वैश्यों और ब्राह्मणों के प्रगाढ़ संबंध थे, दोनों में यजमान और पुरोहित का संबंध था। ब्राह्मण कुलों की अधिक जिम्मेदारी इन वैश्य कुलों पर थी। ब्राह्मणों के कृषि हीन होने पर वह जिम्मेदारी अधिक बढ़ने वाली थी। अतः दोनों ने पाली का त्याग करना और अन्य राज्य या क्षेत्रों में जाकर निवास करने का सामूहिक रूप से स्वीकार करके यह लोग पाली का त्याग करके चले गये हों। जो कुछ हो धर्म संकट जैसी तो कोई घटना नहीं हुई। राज्य प्रकोप तो फिर भी माना जा सकता है। परंतु वह भी भयंकर रूप से नहीं। मारवाड़ राज्य के उस समय के इस समृद्ध पाली नगर का अगर ऐसा भयंकर विध्वंस हुआ होता अथवा इस प्रकार श्री पल्लीवाल जैन इतिहास = 23

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