Book Title: Palliwal Jain Itihas
Author(s): Pritam Singhvi, Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainattva Jagaran

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Page 22
________________ नहीं बसेगा और वहाँ का अन्न जल ग्रहण नहीं करेगा। हमको तो यह कथा पीछे से जोड़ दी गयी प्रतीत होती है ऐसी घटना पाली में विक्रमीय 17 वीं शताब्दि के प्रारंभ में घटी उल्लेखित मिलती है। किन्तु इस शताब्दि में तो पाली पर जोधपुर राठौड़ हिन्द राजवंश का शक्तिशाली यवनशासकों द्वारा पूर्ण सम्मानित राज्य था। हिन्दु राज्य में हिन्दुओं को कोई धर्म संकट उत्पन्न होना माना नहीं जा सकता और जो हिन्दू राज्य में भी कोई धर्म संकट उपस्थित हो जाना केवल गप्प है। इतिहास में भी कहीं ऐसा हुआ प्रतीत नहीं होता कि पाली पर कभी भयंकर हिन्दू विधर्मी शत्रुओं द्वारा कोई भयंकर आक्रमण हुआ हो, जिसके दुखद परिणाम में पाली के निवासियों को पाली सदैव के लिये त्याग कर जाना पड़ा हो। राव सींहा ने पाली में विक्रमीय तेरहवीं शताब्दी के अंतिम भाग में अपना प्रभुत्व भली भांति जमा लिया था और उसी राव सींहा के वंशजों के अधिकार में आज तक पाली चला आता रहा। इससे यह तो सिद्ध हो गया कि ऐसा भयंकर प्रकोप इसके पूर्व हुआ तो वह भी मानने में नहीं आ सकता। गजनवी और गौर के आक्रमणों के पूर्व तो कोई हिन्दू विरोधी शत्रु का आक्रमण राजस्थान में हुआ नहीं सुना गया। इन दोनों के आक्रमणों के स्थान, संवत्, मार्गों की आज इतिहासकारों ने पूरी-पूरी शोध कर के अपनी कई रचनायें इतिहास के क्षेत्र में प्रस्तुत कर दी है, परंतु उनमें कहीं भी पाली पर आक्रमण करने का अथवा आक्रमण के प्रसंग में मार्ग में पाली को विध्वंसित कर देने का कोई वर्णन पढ़ने में अथवा जानने में नहीं आया कि अमुक सैनिक पदाधिकारी द्वारा किये गये अत्याचारों एवं धर्मभ्रष्ट व्यवहारों के कारण पल्लीवालों को पाली छोड़कर जाना पड़ा। गौरी और उसके सैनिक अथवा उच्चाधिकारी सेना नायक अजमेर से आगे बढ़े ही नहीं। गुलाम वंश के शासन काल में जालौर पर, मंडोर पर इल्तुमिस ने वि. सं. 1295-96 में आक्रमण अवश्य किया था, परंतु पाली को भी नष्ट किया हो ऐसा कोई विश्वसनीय उल्लेख अभी तक प्राप्त नहीं हुआ। और इस समय तो पाली राठौड़ वीरवर रावसींहा की सुरक्षा में आ चुका था। विक्रम की सोहलवीं शताब्दी में राठौड़ राजकुल की राजधानी मंडोर से जोधपुर आ गई थी और उन्हीं वर्षों में जोधपुर राज्य का प्रबंध भी समुचित ढंग से सुदृढ़ बनाया गया था। इस राज्य सुव्यवस्था के स्थापना काल में इस संभव है कि पाली के ब्राह्मण कुल राजा से अप्रसन्न हो गये हों। पाली में वैसे तो एक लाख ब्राह्मण घरों का होना बताया जाता है, परंतु यह संख्या मानने में नहीं आ सकती। हाँ इतना - 22 = श्री पल्लीवाल जैन इतिहास =

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