Book Title: Palliwal Jain Itihas
Author(s): Pritam Singhvi, Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainattva Jagaran

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Page 29
________________ दोनों आचार्यों के अपनी जाति के होने के कारण पल्लीवाल उनकी परंपरा के प्रति अधिक लगाव रखने लगे। सोही पल्लीवाल के पौत्र आहड़, उनके पुत्र पदमसिंह की पुत्री भावसुन्दरी ने साध्वी कीर्तिगणि के पास दीक्षा ली थी। आहड के पुत्र श्रीपाल ने सं. 1303 के कार्तिक शुक्ला 10, रविवार को भरूच में आ. कमलप्रभसूरि के उपदेश में ‘अजितनाथ चरित्र’ की रचना करवायी और उनके पट्टधर आ. नरेश्वरसूरि के पास व्याख्यान करवाया। (प्र. 38, सोहीवंश) सहजीगपुर के देहा पल्लीवाल के पुत्र महीचंद्र के पुत्र रत्नपाल विजयपाल ने अपने पूर्वजों के कल्याणार्थ भ. मल्लीनाथ की देरी एवं प्रतिमा भरवायी, जिसकी चंद्रगच्छ के आ. हरिभद्रसूरि के शिष्य आ. यशोभद्रसूरि के पास प्रतिष्ठा करवायी। (प्राचीन जैन लेख संग्रह, भा. - 2, लेखांक 545) साहू ईश्वर पल्लीवाल के पुत्र कुमारसिंह ने नाशिक में भगवान चंद्रप्रभस्वामी के मंदिर का संपूर्ण जिर्णोद्धार करवाया। (विविध तीर्थकल्प में नासिकपुर कल्प) कर्पूरादेवी पल्लीवाल ने सं. 1327 में 'शतपदी दीपिका' को रचना करवायी। ( जैन पु. प्र. सं. प्र. 111 ) पूणा पल्लीवाल के पौत्र गणदेव ने खंभात की पोषाल में ‘त्रिशष्टिशलाका पुरुष चरित्र' भेंट किया। वीरपुर के धनाड्य देदाधर पल्लीवाल की पत्नी रासलदेवी ने 'गणधर - सार्धशतक' की टीका लिखवायी । (जैन. पु. प्र. सं. प्र. 103 ) विक्रमसिंह वगैरह तीन पल्लीवाल भाइयों ने कुमारपालसिंह पल्लीवाल तथा उनकी पत्नी सिंगारदेवी के माता-पिता के कल्याणार्थ सं. 1337 के फाल्गुन शुक्ल 8 के दिन भ. महावीर स्वामी की प्रतिमा भरवायी एवं आ. माणेकसूरि के पास प्रतिष्ठा करवायी । ( आ. बुद्धि. धातुप्रतिमा लेखसंग्रह, भा. 1 लेखकांक 137 ) मंत्री आभू पल्लीवाल के वंश में क्रमशः महणसिंह (पत्नी श्रीदेवी), भीम ( पत्नी कर्पूरादेवी), सोनी सुर ( पत्नी सुकदेवी), सोनी प्रथिमसिंह (पत्नी प्रीमलदेवी) सन्हा और धनराज हुए। सोनी प्रथिमसिंह को सिंह नाम से भाई एवं श्री पल्लीवाल जैन इतिहास: 29

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