Book Title: Palliwal Jain Itihas
Author(s): Pritam Singhvi, Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainattva Jagaran

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Page 18
________________ पुस्तक में अगर सतरहवीं शताब्दि की कोई महत्वपूर्ण घटना प्रसंग वर्णित है तो वह विश्वास करने के योग्य ही समझा जा सकता है। दसरा धनपति साह का पल्लीवाल वैश्यों में विक्रमीय सतरहवीं शताब्दि में पाली का त्याग करने के कार्य को उठाना इस पर भी विश्वास योग्य ठहरता है कि उसी शताब्दि में पाली ब्राह्मणों ने पाली का त्याग किया था। दोनों में घनिष्ट एवं गाढ़ संबंध होने के कारण किसी तृतीय कारण से अथवा दोनों में उत्पन्न हुए कोई तनाव पर दोनों वर्णवाले पाली एक साथ अथवा कुछ आगे पीछे छोड़ चले हों यह स्वभाविक है। तुलाराम ने 45 गोत्रों को निमंत्रित किया था, परंतु आये 33 गोत्र ही थे। राय की पुस्तक में तुलाराम के पूर्वजों के नाम इस प्रकार (-) चिह्न लगा कर सरल पंक्ति में लिखे गये हैं कि पिता, पुत्र और भाई को अलग कर लेना संभव नहीं। गंगाराम, खेमकरन और घासीराम भाई हो सकते हैं। तुलाराम खेमकरन का तृतीय पुत्र था। धनपति के दो पुत्र गुज्जा और सोहिल थे। धनपति प्रतिष्ठित श्रीमंत एवं जाति का नेता था। पल्लीवाल वैश्यों को पालीवाल ब्राह्मणों को 1400 टका (उस समय के दो पैसा और 1400 सीधा सिद्धाहार, जिसमें इक सेर आटा और उसी माप से दाल, धृत, मसाला देना होता था। यह दैनिक था अथवा तैथिक, पाक्षिक, मासिक, वार्षिक इस संबंध में कुछ ज्ञात नहीं हुआ। परंतु जैसी राजस्थान में प्रथा है यह पाक्षिक होगा और अमावस्या और पूर्णिमा पर प्रत्येक मास दिया जाता होगा। यह लगान भारी थी। धनपति ने समस्त पल्लीवाल ब्राह्मण कुलों को एकत्रित करके उक्त वृत्ति में कुछ न्यून करने का सुझाव रखा। पल्लीवाल ब्राह्मणों ने उक्त प्रस्ताव पर कुछ भी विचार करने से अस्विकार किया और इस पर दोनों में भारी तनाव उत्पन्न हो गया। निदान धनपति साह के नायकत्व में पल्लीवाल वैश्य समाज ने पाली का त्याग करके चले जाने का निश्चय किया और वे पाली का त्याग करके मेवाड़, अजमेर, जयपुर, ग्वालियर, मौरेना, हींडौन की ओर चले गये और धीरे-धीरे सर्वत्र राजस्थान, मालवा, मध्यप्रदेश और संयुक्त प्रांत में फैल गये। ___ पाली से पल्लीवाल वैश्य संघ चल कर सहाजिगपुर आया और साडोरा पर्यंत तो संगठित रूप से बढ़ता रहा। साडोरा से विशेषतः संघ सर्व दिशाओं में विसर्जित होकर यथा सुविधा जहाँ- तहाँ बस गया। धनपति शाह के पुत्र गुंजा और सोहिल साडोरा में बसे। गुंजा के 45 और सोहिल के 7 पुत्र हए। इन (52) पुत्रों की स्मृति में 52 बावन लड्डु विवाहोत्सवों में बेटे वालों को लड़की वालों की ओर से दिये जाते हैं। - 18 = श्री पल्लीवाल जैन इतिहास =

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