Book Title: Palliwal Jain Itihas
Author(s): Pritam Singhvi, Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainattva Jagaran

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Page 13
________________ जब हम पट्टावलियों, वंशावलियों आदि ग्रंथों को देखते हैं तो पता चलता है कि पाली के महाजनों की कई स्थानों पर दुकानें थीं और जल एवं थल मार्ग से माल आता जाता था और इस व्यापार में वे बहुत मुनाफा भी कमाते थे। यही कारण था कि ये लोग एक धर्म कार्य में करोड़ों द्रव्य का व्यय कर डालते थे। इतना ही नहीं, उन लोगों की देश एवं जाति भाइयों के प्रति इतनी वात्सल्यता थी कि पाली में कोई साधर्मिक एवं जाति भाई आकर बसता तो प्रत्येक घर से एक मुद्रिका और एक ईंट अर्पण कर दिया करते थे कि आने वाला सहज में ही लक्षाधिपति बन जाता और यह प्रथा उस समय केवल एक पाली वालों के अन्दर ही नहीं थी पर अन्य नगरों में भी थी जैसे चंद्रावती और उपकेशपुर के उपकेशवंशी, प्राग्वटवंशी, आगरा के अगरवाल, डिडवाना के महेश्वरी आदि कई जातियों में थी कि वे अपने बराबरी के बना लेते थे। करीबन एक सदी पूर्व एक अंग्रेज इतिहास प्रेमी टाडे साहब ने मारवाड़ में पैदल भ्रमण करके पुरातत्त्व की शोध-खोज का कार्य किया था। उनके साथ एक ज्ञानचंदजी नाम के यति रहा करते थे उन्होंने भी इसका हाल लिखा है कि पाली के महाजन बहुत बड़ा उपकार करते थे। इस उल्लेख से स्पष्ट पाया जाता है कि मारवाड़ में पाली एक व्यापर का मथक और प्राचीन नगर था। यहाँ पर महाराज संघ एवं व्यापारियों की बड़ी बस्ती थी। आधार - 1. मारवाड़ का इतिहास, 2. एपीग्राफीका इंडीका, 3. हा! पल्लीवाल श्वेताम्बर मूर्तिपूजक हैं। 4. Rajasthan-History, 5. राजस्थान के जैन तीर्थ । - श्री पल्लीवाल जैन इतिहास 13

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