Book Title: Palliwal Jain Itihas
Author(s): Pritam Singhvi, Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainattva Jagaran

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Page 12
________________ साथ संबंध ज्यों का त्यों बना रहा। मंत्री बहड की घटना का समय वि. सं. 400 पूर्व का था यही समय पल्लीवाल जाति का समझना चाहिये। खास कर तो जैनाचार्यों का मरुधर भूमि में प्रवेश हुआ और उन्होंने दुर्व्यसन सेवित जनता को जैन धर्म में दीक्षित करना प्रारंभ किया। तब से ही उन स्वार्थ प्रिय ब्राह्मणों के आसन कांपने लग गये थे और उन क्षत्रियों एवं वैश्यों से जैन धर्म स्वीकार करने वाले अलग हो गये तब से ही जातियों की उत्पत्ति होनी प्रारंभ हुई थी। इसका समय विक्रम पूर्व चार सौ वर्षों के आस-पास का था और यह क्रम विक्रम की आठवीं-नौवीं शताब्दी तक चलता ही रहा तथा इन मूल जातियों के अन्दर शाखा प्रतिशाखा तो वट वृक्ष की भांति निकलती ही गई जब इन जातियों का विस्तार सर्वत्र फैल गया तब नये जैन बनाने वालों की अलग अलग जातियाँ नहीं बनाकर पूर्व जातियों में शामिल करते गये। जिसमें भी अधिक उदारता उपकेश वंश की ही थी कि नये जैन बनाकर उपकेश वंश में ही मिलाते गये । ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाये तो पालीवाल और पल्लीवाल जाति का गौरव कुछ कम नहीं है। प्राचीन ऐतिहासिक साधनों से पाया जाता है कि पुराने जमाने में इस पाली के फेफावती, मल्हिका, पालिका आदि कई नाम थे और कई नरेशों ने इस स्थान पर राज्य भी किया था। पाली नगर एक समय जैनों का मणिभद्र महावीर तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध था। इतिहास के मध्यकाल का समय पाली नगरी के लिऐ बहुत महत्त्व का रहा था। विक्रम की बारहवीं शताब्दी के कई मंदिर मूर्तियों की प्रतिष्ठाओं के शिलालेख तथा प्रतिष्ठा कराने वाले जैन श्वेताम्बर आचार्यों के शिलालेख आज भी उपलब्ध है इत्यादि प्रमाणों से पाली की प्राचीनता में किसी प्रकार के संदेह को स्थान नहीं मिलता है। व्यापार की दृष्टि से देखा जाये तो भारतीय व्यापारिक नगरों में पाली शहर का मुख्य स्थान था। पूर्व जमाने में पाली शहर व्यापार का केन्द्र था। बहुत जत्था बंद माला का निकास, प्रवेश होता था, यह भी केवल एक भारत के लिये ही नहीं पर भारत के अतिरिक्त दूसरे पाश्चात् प्रदेशों के व्यापारियों के साथ पाली शहर व्यापारियों का बहुत बड़े प्रमाण में व्यापार चलता था। पाली में बड़े बड़े धनाढ्य व्यापारी बसते थे और उनका व्यापार विदेशों के साथ तथा उनकी बड़ी-बड़ी कोठियाँ थी। फ्रांस, अरब, अफ्रीका, चीन, जापान, मिस्त्र, तिब्बत वगैरह प्रदेश तो पाली के व्यापारियों के व्यापार के मुख्य प्रदेश माने जाते थे। 12 श्री पल्लीवाल जैन इतिहास

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