Book Title: Paiavinnankaha Part 02
Author(s): Kastursuri, Somchandrasuri
Publisher: Rander Road Jain Sangh

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Page 11
________________ सिरिविण्हुकंतझामहोदयेणं सहगारो वि कज्जसिद्धयरो। र सद्दकोसो सत्थो पंडियअजियभाईसद्धेण अपव्वपरिसमेण सज्जीकयो / र चित्तनिम्माणं वीरेन्द्रभाईचित्तकारेण सुप्पयासेण कयं / / ए मुद्दणजंतम्मि गंथावयारो (कोम्प्युटरसेटींग) जगईसभाईबारियासावगेण कओ / र मुद्दणं अमदावादवट्टिभरतग्गाफिक्सबंधुहिं सोत्थाहं कयं / र सव्वकज्जेसुं उल्लासो रायाराम-पेमजी-पंकज-संतारामाइहिं दिट्ठियो / अंतम्मि : कहं कहेज्जा विकहं कहंची, कहेज्ज नेवप्प-हियाहिलासी / जिणीसराणं सुकहं कहंतो, संसारपारं परमं लहेइ / / 1 / / त्ति आयारियसिरिविजयधम्मधुरंधरसूरिहिं पाइयविन्नाणकहाए बीईयभागस्स आमुहम्मि जं कहियं, तयणुसारं कहाणं पढणेण, जीवा जुग्गं जीवणं जीविऊण मणुस्सभवं सत्थयं कुणिऊण सिग्धं सासयं संतिं पावेइरे इइ सुहभावणा / 2061 मिये विक्कमवरिसे आयरियविजयचंद्दोदयसूरिगुरुबंधुभद्दवर्याम्म, किण्हसत्तमीए आयरियविजयअसोगचंदसूरिचरणकिंकरो मुंबापुरीवालकेस्सरमंडणबाबुअमीचंदपनालालसिरि सोमचंदविजयो आइनाहचेइयम्मि

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