Book Title: Padmasagarsuriji Ek Parichay
Author(s): Vimalsagar
Publisher: Ashtmangal Foundation

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य केवल उपाश्रय की चार दीवारी में ही बन्धे नहीं रहते, आवश्यकता पड़ने पर लोककल्याण के लिये भी प्रवृत्त हो जाते हैं. यह एक बहुत ही विरल ऐतिहासिक घटना है कि युगप्रधान आचार्य कालकसूरि ने तो अन्याय, अत्याचार व दुराचार से व्याप्त राजा के खिलाफ आवाज उठाई थी. इतना ही नहीं, विवश होकर उन्हें युद्ध के मैदान में भी उतरना पड़ा था और अन्तत: वे अनीति, अन्याय को नष्ट कर तथा अपनी सहोदरा साध्वी सरस्वती को सुरक्षित लेकर प्रायश्चित पूर्वक गरिमा के साथ श्रमण-जीवन में पुनः लौटे थे. लोक एवं धर्म की रक्षा के लिए जैनाचार्य के योगदान का इससे बड़ा व प्रभावशाली उदाहरण और क्या हो सकता है? सचमुच समाज व राष्ट्र पर रहे जैनाचार्यों के उपकारों को कभी भुलाया नहीं जा सकता. आत्मसाधना और धर्म-प्रभावना से पूत-पवित्र जैनाचार्यों की यह गरिमापूर्ण आध्यात्मिक परम्परा श्रमण भगवान महावीर के पूर्व और उनके बाद भी निरन्तर गतिशील रही है. हर जैनाचार्य ने विविध सात्त्विक क्रियाकलापों के द्वारा इसे उष्मा प्रदान करने का यथाशक्य प्रयास किया है. जैनाचार्यों की इस अटूट श्रृंखला में शासन प्रभावक के रूप में एक अर्वाचीन नाम है: ओजस्वी प्रवक्ता आचार्य प्रवर श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब का. आचार्यश्री का बहुमुखी विराट व्यक्तित्व और प्रभावशाली कृतित्व समय के शाश्वत हस्ताक्षर हैं. ११ For Private And Personal Use Only

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