Book Title: Padmasagarsuriji Ek Parichay
Author(s): Vimalsagar
Publisher: Ashtmangal Foundation

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैनाचार्य : एक अनुशीलन हर धर्म-परम्परा में हमेशा ही आचार्यों की विशिष्ट महत्ता रही है. आचार्य धर्म-परम्परा को जीवन्त व शालीन बनाए रखने का दायित्व निभाते हैं जैन विचारधारा में 'आचार्य' की परिभाषा व्यवहार में प्रचलित अर्थों से कुछ भिन्न होती है. यहाँ आचार्य का अर्थ ’आचार' अर्थात् आचरण से सम्बद्ध होता है. जैनेतर परम्पराओं में आचार्य के लिए केवल बौद्धिक प्रतिभा और वैचारिक विद्वत्ता पर्याप्त होती है. जब कि जैन विचारधारा में प्रतिभा और विद्वत्ता के साथ-साथ दक्षता / पात्रता और सदाचारी जीवन भी परम आवश्यक होता है. जैन परम्परा में सदाचरण के अभाव में आचार्य की कोई महत्ता नहीं है. यहाँ आचार्य केवल विचारात्मक ही नहीं, रचनात्मक भी होते हैं. इसीलिए तो आगमों में आचार्यों को 'पंचायारपवित्ते' कहकर पुकारा गया है. 'पंचायारपवित्ते' का तात्पर्य है : ज्ञानाचरण, दर्शनाचरण, चारित्राचरण, तपाचरण तथा वीर्याचरण की समुज्ज्वल साधना के द्वारा स्वयं के व दूसरों के जीवन को पवित्रित/परिष्कृत करते हुए जैन संघ के योग व क्षेम की निरन्तर रखवाली करने वाले. जैनाचार्य समग्र जैन शास्त्रों के पारगामी तो होते ही हैं, अन्य दर्शनों व शास्त्रों का ज्ञान भी उनकी अद्भुत बौद्धिक उपलब्धि होती है. समय-समय पर विविध For Private And Personal Use Only

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