Book Title: Padmasagarsuriji Ek Parichay
Author(s): Vimalsagar
Publisher: Ashtmangal Foundation

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विद्यालय के होनहार विद्यार्थियों में दर्ज करा दिया. तन्दुरुस्त काया, निरन्तर निखरती प्रतिभा, सतत उद्यमशीलता इत्यादि ने प्रेमचन्द की विकास - यात्रा को अनोखा रूप दिया. आपके पिता अजीमगंज के लब्धप्रतिष्ठ ज़मीन्दार राजा श्री निर्मलकुमारसिंहजी नवलखा की आलीशान कोठी में पारिवारिक स्वजन की भाँति कार्यरत थे. माता भी उन्हीं के यहाँ घरेलू प्रभाग की प्रभारी थीं. नतीजन प्रेमचन्द की जीवन - शैली प्रारम्भ से ही एक महान घराने की उच्च परम्पराओं के अनुरूप निर्मित हुई. शान से जीना, बन - ठन कर चलना, अदब से व्यवहार करना, सभ्यता से खाना, सौम्यता से बोलना,स्वच्छता पूर्वक रहना इत्यादि सभी - कुछ नवलखा खानदान में सहज था, जो कि प्रेमचन्द के जीवन - व्यवहार में भलीभाँति उतरा. अजीमगंज उस ज़माने में यतियों का केन्द्र था. अजीमगंज के करीब - करीब सभी जमीन्दारों के यहाँ बालकों के अध्यापन तथा धार्मिक - शिक्षण के लिए यतिजी महाराज आया करते थे. नवलखा परिवार में यति श्री मोतीचन्दजी का नियमित रूप से आना - जाना रहता था. फलतः शुरु से ही प्रेमचन्द में सुसंस्कारों का सिंचन हुआ, जैन इतिहास और अध्यात्म की बातें सुनने को मिली. निर्मल - निर्दोष बाल - मन आध्यात्मिक जीवन - धारा का अनुरागी बन गया. फिर यह प्रवाह अबाधित जारी ही रहा. आख़िरकार एक दिन अन्तःकरण की उर्वर - १४ For Private And Personal Use Only

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