Book Title: Nyayasindhu Prakaranam
Author(s): Vijaynemusuri
Publisher: Chimanlal Gokaldas Ahmedabad
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(१४)
न्यायसिन्धोः
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विषयः
श्लोकः सत्यमुपपादितम्
५७८-५७९ मृतशरीरे चैतन्याभावे हेतूपदर्शनम् आत्मादेः साधकबाधकप्रमाणयोरसत्वेऽपि तनिषेधक
बृहस्पतिसूत्राणामापादनपरतयोपपादनम् ५८१-५८३ चार्वाकमतचण्डनम् ५८४
(५८५-५८६ तत्रानुमानानभ्युपगमे चार्वाकस्य परगताज्ञानादेः परग
गतस्वर्गाद्यभ्युगमस्य च ज्ञानं दुश्शक्यमिति दर्शितम् सत्त्वस्य प्रत्यक्षविषयत्वेन व्याप्ताधनुमानस्याव्याप्ताधात्मनश्च सिद्धिरुपदर्शिता
५८७-५८८ मेयव्यवस्थाया मानेन व्याप्तावनुमानस्याव्याप्तौ शश
शृङ्गादेः प्रमेयत्वस्य चापादनम् ५८९ (र्शनम् ५९०-९२ आत्मनः स्वादृष्टेनिखिलादृष्टेर्वाऽभावोपगमे दोषप्रदलोकसिद्धानुमानाभ्युपगमे तदविशेषात्परलोकाधनुमानाऽभ्युपगमोऽपीति दर्शितम्,
५९३ प्रत्यक्षे प्रामाण्याभ्युपगमे तत्साधकतयानुमानाभ्युपग
मोऽपीति दर्शितम्, . आप्तागमस्य प्रामाण्य व्यवस्थापितम्, स्वर्गादिसिद्धिराधेदिता. आगमप्रामाण्याभ्युपगमश्चार्वाकस्यावश्यकः ५९७-९८-९९ देहस्य चैतन्यमपाकृतं भूतव्यतिरिक्तत्वादिविका .ल्पनेन,
६००-६०१ मोदकादेः कथञ्चिद्धषिर्गुडाधभिन्नत्वं ६०२-६०३ प्रत्येकावृत्तः समुदायावृत्तित्वं च व्यवस्थाप्य चाकोतवृष्टान्तोन्मूलनम्
६०४ प्रत्यकभूतगतायाश्चैतन्यशकरपाकरणम् ६०५.६०६ (६०८) प्रत्यक्षाभावाच्छशशजवदात्मा नास्तीत्यस्य खण्डनम् ६०७परात्मनि स्वात्मनि च मानमुपदर्शितम् “६०९ अहमिति प्रतीतेन शरीरविषयत्व किन्त्वात्मविषयत्वमित्युपपादितम्
६१०-१३ व्याप्तिग्रहः परेणापि स्वीकरणीयो न चानुमानमन्तराव्यभिचारशङ्कापीति दर्शितम्
६१४-१५ अन्यथानुपपन्नतामात्रस्य सद्धेतुलक्षणस्य सतर्कस्य ___म चार्वाकशाभीतिरिति दर्शितम्
६१६-६१७ प्रत्योदितो न व्याप्तिग्रहः किन्तूहप्रमाणादिति

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