Book Title: Nyayakumudchandra Part 2
Author(s): Mahendramuni
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
View full book text
________________ अवतरणसूचिः 863 अविशेषाभिहितेऽर्थे वक्तुरभि-[न्यायसू०१।२।१२] | एकः प्रतिषेधहेतु: [न्यायवि० पृ० 39] 120 321 एकद्रव्यमगुणं संयोग-[वैशे० सू० 2017 ] 279 अविशेषोक्ते हेतौ प्रतिषिद्धे [न्यायसू० 5 / 2 / 6] 331 | एकधर्मोपपत्तेरविशेषे [न्यायसू० 5 / 1123 ] 327 अशक्तं सर्वम् ] 396 | एकसामग्र्यधीनत्वाद्रूपादे [प्रमाणवा० 1110] 236 असदकरणादुपादानग्रहणात् [ सांख्यका०९] 352 | एकस्मिन्नपि दृष्टेऽर्थे [मी० श्लो० उपमान• इलो० अस्ति ह्यालोचनाज्ञानं प्रथमं [मी० श्लो० प्रत्यक्ष 46] 492 ___श्लो० 112 ] 770 एकस्यार्थस्वभावस्य [प्रमाणवा० 3 / 42] 524 अस्येदं कारणं कार्य संयोगि [ बैशे० सू० 9 / 2 / 3 ] एकात्मसमवेतानन्तरज्ञानग्राह्य-[ . 460 एकादश जिने [तत्वार्थसू० 9111] 862 अस्वतन्त्र बहिर्मनः [ ] 431, 833 | एकादश जिने क्षुत्पिपासादयः [ ]854 आकाशमपि नित्यं सद् [ मी० श्लो० शब्दनि० श्लो० एगो मे सस्सदो अप्पा [भावपाहु० गा० 59, 30-31 ] 715 मूलाचा० गा० 2 / 48] 845 आख्यातशब्दः संघातो [वाक्यप० 21 1739 एवं धर्मविना धर्मिणामेव [प्रश० भा० पृ० 15] आतपः कटुको रूक्षः [ राजनिघ०] 669 आत्मत्वाभिसम्बन्धादात्मा [ प्रश० भा० पृ० 69] | एवं प्राग्नतया वृत्त्या [ मी० श्लो० शब्दनि 215 श्लो० 190 ] 454 आत्मनि सति परसंज्ञा [प्रमाणवा० 2219] 839 / कञ्चित् कालं स्थिरः शब्दः [ ] 701, 718 आत्मलाभे हि भावानां [ मी० श्लो० सू० 2 श्लो० | कर्मक्षयाद्विमोक्षः [ ] 841 48] 195, 199 | कर्मण्यण् [पाणिनि० 3 / 2 / 1] 760, 796 आत्मशरीरेन्द्रियार्थबुद्धिमन:- [न्यायसू० 111 / 9] कल्पनापोढमभ्रान्तम् [न्यायबि० 124] 523 309 कस्यचित्तु यदीष्येत [ मीमांसाश्लो० स० 2 इलो० आत्मा मनसा युज्यते मन [ न्यायमं०१०७४] 665 आदौ ब्रह्मा मुखतो ब्राह्मणं ससर्ज [ काभीतिः ( भीभिः ) [जैनेन्द्रव्या० 123 / 32] आनन्दं ब्रह्म [बृहदा० 3 / 9 / 28 ] 838 आनन्दं ब्रह्मणो रूपं तच्च [ ] 831, 837 | कामी यत्रैव यः कश्चिन्नि-[ प्रमाणवातिकालं० पृ० आरामं तस्य पश्यन्ति [बृहदा० 4 / 3 / 14] 147 30] 584 आसयोगकेवलिनो जीवा कार्यव्यासङ्गात् कथा- [न्यायसू० 5 / 2 / 19 ] 334 आसर्गप्रलयादेका बुद्धिः ] 189 | कालात्ययापदिष्ट: [न्यायसू० 112 / 9] 320 आहारा या निहारा कालादेः स्वयमभेदात् s exie 647 आहुविधातृ प्रत्यक्षं [ब्रह्मसि० तर्कपाद श्लो० 1] | किं स्यात् सा चित्रतैकस्याम् [प्रमाणवा० 3 / 210] 149 130, 613 इत्यो छट्ठीओ अहो / 872 क्रियायाः प्रवर्तकं वचनम् [शाबरभा० 202] इत्यमिश्राः स्वयं भावाः [सम्बन्ध 574 इन्द्रियार्थसमनन्तरप्रत्यय- [ ] 47 कियावद् गुणवत् समवायि-[वैशे० सू० 11315] इन्द्रियार्थसन्निकर्षोत्पन्नम-न्यायसू० 1114] 523 214 इयं त्वन्यैव सर्वार्था [तन्त्रवा० 2111] 579 क्रियाविष्टं द्रव्यं कारकम् लघी०स्वव०का०७२] 42 ईश्वरज्ञानमिन्द्रियार्थसन्निकर्षजं [ | क्लेशकर्मविपाकाशयरप- [ योगसू०.११२४ ] 109 उत्क्षेपणमपक्षणमाकुञ्चनं [वैशे० सू० 11117] 279 | क्षणिका हि सा [शाबरभा० 215 (?)] 44 उत्तरस्याप्रतिपत्तिः [न्यायसू० 5 / 2 / 18] 334 | क्षीरे दधि भवेदेवम् [ मी० इलो० अभाव० उदाहरणसाधात्साध्य-न्यायसू० 10234] 314 श्लो०५] 468 उदाहरणापेक्षस्तथेत्युपसंहारो [ न्यायसू० 131338] | गंगाद्वारे कुशावर्ते [ 634 | गत्वा गत्वा तु तान् देशान् यद्यर्थो [ मी० श्लो० उपात्तकर्मणा निर्हरणं [ ] 812 ___ अर्था० श्लो० 8 ] 725 उपभोगाश्रयत्वेन गृहीते-प्रमाणवा० 11229] 840 गत्वा गत्वापि तान् देशान् नास्य [न्यायम० पृ० उपलब्धिसाधनानि [न्यायभा० पृ० 18] 28 38] 512 उभयकारणोपपत्तेरुप-[ न्यायसू० 5 / 1 / 25] 328 गन्धः पृथिव्यामेव [ 238 उभयसाधर्म्यात्प्रक्रिया-[ न्यायसू० 5 / 1 / 16 ] 327 | गन्धो घाणग्राह्यः [प्रश० भा० 10 105 ] 273 ऊर्ध्ववृत्तितदेकत्वाद-[ मी० श्लो० शब्दनि श्लो० गवयश्चाप्यसम्बन्धान्न [ मी० श्लो० उप० इलो० 189] 453 | 45] 492 JJY

Page Navigation
1 ... 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634