Book Title: Nyayakumudchandra Part 2
Author(s): Mahendramuni
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 612
________________ 818 न्यायकुमुदचन्द्रे [70 ] 69 षडेव धर्मिणः / 1364 | साध्यदृष्टान्तयोः धर्म- [न्यायसू० 5 / 114] 324 षण्णामनन्तरातीतम् अभिध०२१७] 395 साध्यनिर्देशः प्रतिज्ञा [न्यायस० 111130314 षण्णामाश्रितत्वम् [प्रश० भा० पृ०१६] 302 | साध्यरूपतया येन ममेदमिति [ प्रमाणवातिकालं. 10 संजोगमूलं जीवेन मूलाचार०२१४९] 845 30] 584 संयोगाद्विभागात् शब्दाच्च वैशे० सू० 2 / 2 / 31]246 साध्यसाधात्तद्धर्मभावी [न्यायसू० 11236] संवादस्याथ पूर्वेण [ 314 सत्यपि आनन्त्ये न्यायमं० पृ० 622349 साध्याविशिष्ट: [न्यायसू० श२८] 320 सत्सम्प्रयोगे जैमिनिसू० 11104 523 | समानानेकधर्मोपपत्ते-[ न्यायसू० शश२३३१० सदृशत्वात्प्रतीति-[मी० श्लो०शब्दनि० श्लो०२४८] | सामान्यदृष्टान्तयोरैन्द्रिय-[न्यायसू०५।१।१४]३२६ 703 सामान्यद्वारकोऽप्यस्ति सधनं ब्राह्मणं हन्यात् [ ] 763 सामान्यवच्च सादृश्यमेककत्र [ मी० श्लो० उपमान स धर्मोऽभ्युपगन्तव्यो [मी० श्लो० शब्दनि०लो. श्लो० 35] 493 240] 702 सारणवारणपरिचोयणाइ [ 876 सन्निकर्षः अर्थोपलब्धि- [ ]28 साहचर्ये च सम्बन्धे स प्रतिपक्षस्थापना-[न्यायसू० 22 // 3] 319,338 | सिद्धमेकं यतो ब्रह्म [प्रमाणवातिकालं. पृ०३० समयः प्रतिम वा [मी० इलो० सम्बन्ध० श्लो. 13] 553 | सिद्धरूपं हि यद्भोग्य प्रमाणवातिकालं० पृ० 30] समानतन्त्रप्रसिद्धः न्यायसू० 131129] 313 .. 584 सम्बद्धं वर्तमानञ्च गृह्यते [मी० श्लो० सू०४ श्लो० | सिद्धान्तमभ्युपेत्य अनिय-न्यायसू०५।२।२३] 335 84] 53 | सिद्धान्तमभ्युपेत्य तद्वि- [न्यायसू० 102 / 6] 319 सम्बन्धज्ञानसिद्धिश्चेद् [मी० श्लो० शब्दनि० श्लो० | सिद्धिः स्वात्मोपलब्धिः [सं० सिद्धभ० श्लो०१४ 243] 702 सुखमालादनाकारम् / [ ] 129 सम्बन्धस्त्रिप्रमाणक: [मी० श्लो० पृ०६८०] 550 सुविवेचितं कार्य कारणं [ 604 सम्भवतोऽर्थस्य अतिसामान्य- [न्यायसू० 122 / 13] स्थिरवाय्वपनीत्या च [मी० श्लो० शब्दनि श्लो० 322 62] 711 सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि [तत्त्वार्थसू० 131] 865 स्पर्शः त्वगिन्द्रियग्राह्यः [प्रश० भा० पृ० 106] सरागा अपि वीतरागवच्चेष्टन्ते [ ]603,851 273 सवं खल्विदं ब्रह्म [छान्दोग्यो० 3 / 14 / 1] 147 स्याच्छब्दस्य हि संस्कारा- [मी० श्लो० शब्दनि० सवं सालम्बनं ज्ञानम् [. श्लो० 52.] 711 सर्वचित्तचत्तानामात्म- न्यायबि० पृ० 19] 47 स्वत: सर्वप्रमाणानां [मी० श्लो० स० 2 श्लो० सर्वतन्त्रप्रतितन्त्र- [न्यायसू० 111127] 312 47] 195 सर्वतन्त्राऽविरुद्धः तन्त्र [ न्यायसू० शश२८] 312 स्वपक्षे दोषाऽभ्युपगमात् [न्यायसू० 5 / 2 / 20] 334 सर्वस्योभयरूपत्वे प्रमाणवा० 3 / 181] 620 स्वपरावभासमेकं ज्ञानं सर्वेषां युगपत्प्राप्तिः सङ करः [ |360 | स्वविषयानन्तरविषय- न्यायबि० पृ० 20 47 सवितर्कविचारा हि [अभिध० 113] 395 स्वाभिधेयाविनाभूत- [तन्त्रवा० 24123] 568 सव्यभिचारविरुद्ध- न्यायसू स्वामित्वेनाभिमानो हि [प्रमाणवातिकालं० पृ० 30] स हि रुद्रं वेदकर्तारम् / 726 584 साधर्म्यवैधाभ्यां प्रत्यव- [न्यायसू० 102 / 18] | हिरण्यगर्भ प्रकृत्य 187 322 | हिरण्यगर्भः सर्वज्ञः साधर्म्यवैधाभ्यामुपसंहारे [न्यायसू० 5 / 1 / 2] हीनमन्यतमेनापि न्यायसू० 5 / 2 / 12] 333,436 323 हेतुमदनित्यमव्यापि [सांख्यका०१०३५३ साधर्म्यवैधम्र्योत्कर्षापकर्ष-[ न्यायसू० 5 / 11323 हेतूदाहरणाधिक- [न्यायसू० 5 / 2 / 13] 333 साधर्म्यात्तुल्यधर्मो- [न्यायसू० 5 / 1132] 328 | हेतोस्त्रिष्वपि रूपेषु [प्रमाणवा० 3.14) 439 साधुभिर्भाषितव्यं ] 761 | हेत्वपदेशात् प्रतिज्ञायाः न्यायसू० 121139] 315 साध्यत्वे हेतुव्यापारः 1 579 | हेत्वाभासाश्च यथोक्ताः [न्यायसू०५।२।२४] 335 -entre--

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