Book Title: Nishesh Siddhant Vichar Paryay
Author(s): Labhsagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 21
________________ R नि:शेषसिद्धान्तविचार-पर्वाये सीसिणीत्ताए दलयइ / तए ण सा अजचंदणा अन्जा देवाणदं माहणि सयमेव पवावेइ मुंडावेइ सयमेव सेहावइ' इत्यष्टाविचारः / / सू० 382) भगवत्यां पुनः 'पव्वाधणा'ग्रहणम् अनवगतावगमविशेषाधानार्थम् / तए ण जमाली खत्तियकुमारे पुष्फतंबोलाउहमाइयं पाणदाओ य विसज्जेह, पाणहाओ विसजित्ता एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ. उत्तरासंग करेत्ता आयंते चोक्खे परमसूइन्भूए अंजलिमउलियहत्थे जेणेव समणे भयवं महावीरे तेणेव उपागच्छइ उवागच्छित्ता समण भयवमित्यादि / 'आयंते' त्ति शौचार्थकृतजलस्पर्शः / 'चाक्खे' त्ति आचमनादपनीताशुचिद्रव्यः / भगवत्यां (सू० 384 ) 'पभट्टउत्तरिजा' प्रचष्टं व्याकुलत्वादुत्तरीयं वसनविशेषो यस्याः सा तथा जमालिमातेत्यर्थ' इत्यनेन उत्तरिजशब्देन उत्तरीयम्-उत्तरासलवस्त्रमुक्तम् (सू० 384) / पभू णं भंते ! चमरे असुरिंदे चमरचंचाए रायहाणीए सुहम्माए सभाए चमरंसि सीहासणासि तुङिएण सद्धितुटित-वर्ग:, दिवाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए ? नो इणट्रे समटे / से केण?ण' भंते ! मो पभू जाव विहरित्तए ? अजी चमरस्स चमरचंचाए रायहाणीए सभाए सुहम्माए माणवए चेइयखंभे वइरामएसु गोलवट्टसमुग्गऐतु बहूओ जिणसकहाओजिनसक्थीनि सनिक्खित्ताओ चिटुंति, जाओ पंचमरस्स 3 अन्नेसिं च बहूण असुरकुमाराण देवाण य देवीण य अच्चणिज्जाओ चन्दनादिना, वंदणिजाआ स्तुतिभिः, नमंसिणिज्जाओ प्रणामतः, पूणिजाओ पुष्पैः, सकाणिजाओं वस्त्रादिभिः, सम्माणणिजाओ प्रतिपत्तिविशेषैः, कल्लाण मंगलं देवयं घेइयं पजवासणिज्जाओ भवंति, से तेण?ण अजो ! एवं बुच्चइ-नो पभू चमरे जाव विहरित्तए इति भगवत्यां दशमशतपञ्चमोद्देशके आशातनापरिहार उक्त: /

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