Book Title: Nishesh Siddhant Vichar Paryay
Author(s): Labhsagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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________________ परिशिष्टम् जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता तिक्सुत्तो आयाहिण पयाहिण कति करित्ता वंदति नमसंति जाव तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासंति / भगवइए भणियं / एवं उववाइए रायपसेणए नायधम्मकहाए एवमाइ बहुएहिं गंथेहि भणियं / दारवइए नयरीए कण्हे वासुदेवे जाव भगव अरिट्टनेमी पुच्छिओ अढारसमणसाहस्सीओ कयरेण वंदणेणं वंदामि / दुवालसावत्तेणं वंदाहि / आवस्सगचुण्णीए भणिय / सोयरीए नयरीए पएसीरागा केसि कुमारसमण पंचविहेण अभिगमेण वंदइ खामेइ / एवमाइ अण्णे बहवे समणोवासया पंचविहण अभिगमेण वंदति नमसंति / जे भिक्खू सगणेच्चियाए वा परगणेच्चियाए वा निगंथीए सद्धि गामाणुगाम दुइज्जइ आवजइ चउमासियं परिहारट्टाणं / सयमेव आभरणालंकार ओमुयइ ओमुयत्ता सपमेव चउहि अट्टाहि लोयं करित्ता छटेण भत्तेण उसमेणं अरहा संवच्छर साहिय चीवरधारी होत्था / तेण पर अचेलए / जंबूद्दीवपण्णत्ती / पच्छिमे तिभाए पण्णरस कुलगरा-- संमुई, पडिलुई, सीमंकरे सीमंधरे, खेमंकरे, खेमंधरे, विमलवाहण, जसम,ऽभिचंदे, चंदाभे, पसेणइ, मरुदेवा, नाभी, उसमे। हनीई मा ठि जंबुद्दीवपण्णत्तीए / रुप्प टंकं विसमाहयक्खरं नवि य रूवओ छेओ / दोण्हपि समाओगे रूवो छेयत्तणमुवेइ // उस्सग्गेण जहिं दवलिंगं भावलिंगं च अस्थि सो वंदणिज्जो। जहा-रूवगं, जत्थ सुद्धं टंक समक्खर सो छेको भवति / रुप्प जत्थ सुद्धं टंकं विसमाहयक्खर सो वि रूवगो छेओ न भवइ, रुप्प जत्थ असुद्धं टंकंपि असुद्ध सोपि सुतरां छेओ न भवइ किंतु जत्थ दुण्णि वि सुद्धाणि सो छेओ / एवं सो संव्यवहार्य इत्यर्थः / जत्थ उभयमवि अस्थि / एत्थ य

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