Book Title: Nibandh Nichay Author(s): Kalyanvijay Gani Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor View full book textPage 4
________________ 4 लेखक का प्रास्ताविक वक्तव्य : "निबन्ध-निचय" वास्तव में हमारे प्रकीर्णक छोटे-बड़े लेखों का संग्रह है। इसमें के लेख नं० ७-८-६-११-१७ ये निबन्ध विस्तृत साहित्य-समालोचनात्मक हैं। नं० १०वां १२-१३-१४-१५-१६-१८ ये लेख जैन श्वेताम्बर-सम्प्रदाय के साहित्य के समालोचनात्मक लघु लेख हैं तब निबन्ध १६वां श्वेताम्बर-सम्प्रदाय के प्रतिक्रमण सूत्रों में चिरकाल से रूढ़ और आधुनिक सम्पादकों के अनाभोग से प्रविष्ट अशुद्धियों की चर्चा और स्पष्टीकरण करने वाला विस्तृत लेख है। प्रारम्भ के १ से ६ तक के लेख भी श्वेताम्बर प्राचीन जैन साहित्य के अवलोकनात्मक लेख हैं। "प्राचीन जैन तीर्थ" नामक निबन्ध में जैनमूत्रोक्त १० तीर्थों का शास्त्रीय ऐतिहासिक निरूपण है। २१वां निबन्ध "मारवाड़ की सबसे प्राचीन जैन मूर्तियाँ" ता० १५-८-१९३६ का लिखा हुमा, २२वां प्रतिष्ठाचार्य निबन्ध ता० १९-८-५५ का लिखा हुआ और निबन्ध २३वां ता० २७-७-४१ का लिखा हुआ है। ये तीनों लेख समालोचनात्मक और विस्तृत हैं। २४ और २५वां ये दोनों निबन्ध समालोचनात्मक और खास पाठनोय हैं। निबन्ध २७वां तिथि-चर्चा सम्बन्धी गुप्त रहस्य प्रकट करने वाला है। निबन्ध २७ से लेकर ३६ तक के १३ दिगम्बर-सम्प्रदाय के साहित्य की मीमांसा सम्बन्धी है। इनमें से अनेक निबन्ध ऐतिहासिक ऊहापोहात्मक होने से विशेष उपयोगी हैं । षट्खण्डागम, कषायपाहुड, कषायपाहुडचूर्णि, भगवती आराधना, मूलाच र आदि ग्रन्थों के कर्ता तथा इनके निर्माणकाल का ऊहापोह और निर्णय करने का यत्न किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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