Book Title: Nibandh Nichay
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 11
________________ पृष्ठ 36 " 17 श्री हरिभद्रीय सटीक अनेकान्तजयपताका में : : : ऐतिहासिक नाम : : : "" ,, १०५ उक्तं च = धर्मकीर्तिना इति वार्तिके । ११६ उक्तं च वादिमुख्येन श्रीमल्लवादिना सम्मतौ ॥ विशेषस्तु सर्वज्ञसिद्धिटीकातोऽवसेयः ॥ ,, १३५ उक्तं च धर्मकीर्तिना । ,, २०० धर्मकी निर्वार्तिके । ,, २२६ एतेन यदाह न्यायवादी = धर्मकीर्तिर्वार्तिके 1 ,, ३३४ आह च न्यायवादी = धर्मकीर्तिः ॥ ( मू० ) - वः पर्वाचार्यैः भदन्तदिन्नप्रभृतिभिः || ,, ३३७ ( मू० ) यथोक्तम् - भदन्त दिन्नेन ॥ यथोक्तम् = वर्तिकानुसारिणा शुभगुप्तेन ॥ ,, ३४७ उक्तं च न्यायवादिना = धर्मकीर्तिना ॥ ६ सर्वज्ञ - सिद्धि - टीका । ८ कुक्काचार्यादिभिरस्मद्वंशजै ० । ४२ कुक्काचार्यादिचोदितं । ५८ मल्लवादिना सम्मतौ । ,, ३५७ तथा चाहुवृद्धाः = वृद्धाः = शब्दार्थव्यवहारविदः पाणिनीयाः ॥ ,, ३६६ ग्रह च शब्दार्थतत्त्ववित् = भर्तृहरिः ॥ " ,, ३६८ यदाह = भाष्यकारः ॥ ,, ३७५ आह च वादिमुख्य: = समन्तभद्रः ॥ ३८५ ग्रह च भाष्यकारः = पतञ्जलिः ॥ ३८७ उक्तं भर्तृहरिणा ॥ "? ,, ३८८ भाष्यकारः = पतञ्जलिः ॥ आठ ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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