Book Title: Nibandh Nichay
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 12
________________ पृष्ठ ३८२ एवं शब्दब्रह्मपरिवर्तमानं जगत् इति प्रलापमात्रम् ।। , ३३ पूर्वाचार्यैः = अजितयशःप्रभृतिभिः ।। , ३६ पूर्वाचार्यैः = धर्मपाल-धर्मकीर्त्यादिभिः ।। ___३६ न्यायवादो = धर्मकोतिः ॥ ., ४६ सर्वज्ञसिद्धो।। ,, ६८ निर्णोतमेतद् गुरुभिः प्रमाणमीमांसादिषु ।। ,, ६६ न्यायवादी = धर्मकीतिः ।। ,, १२६ उक्तं च धर्मकातिना ॥ ,, १३० धर्मकोतिना = भवत्तार्किकचूडामणिना ।। ,, १३१ स्वयूथ्यः = दिवाकरादिभिः सन्मत्यादिषु इति ॥ ,, १७४ धर्मकीर्तिनाऽप्यभ्युपगतत्वात्, हेतुबिन्दौ । ,, २२० तथा चार्षम्-“सो हु तवो कायवो." Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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