Book Title: Neev ka Patthar
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 2
________________ प्रथम दो संस्करण ( अष्टान्हिका २१ जुलाई, २००५ से अद्यतन ) तृतीय संस्करण (१ जून, २००६ श्रुतपंचमी) जैनपथ में सम्पादकीय के रूप में ३,५०० हजार योग १४,५०० हजार मूल्य : आठ रुपये मुद्रक : प्रिन्टो 'ओ' लैण्ड बाईस गोदाम, जयपुर प्रकाशकीय प्रस्तावना आत्मकथ्य अध्याय- १ - - - - अध्याय अध्याय ३ अध्याय- ४ .... पूर्वाग्रह के झाड़ की जड़ें .. माँ और सरस्वती माँ अध्याय ५ अध्याय ६ वस्तुस्वातंत्र्य और अहिंसा अध्याय ७ अध्याय अध्याय अध्याय अध्याय ११ १२ अध्याय अध्याय अन्य १३ • ८,००० हजार - ३,००० हजार - - २ क्या / कहाँ ? नींव का पत्थर सबै दिन जात न एक समान धन्य है वह नारी वही ढाक के तीन पात - ८ ९ १० कुछ अनछुए पहलू आयोजन का प्रयोजन राष्ट्रीय स्वतंत्रता और वस्तु बहू हो तो ऐसी अच्छी पड़ौसनें पुण्य से...... राग-द्वेष की जड़ . क्या मुक्तिमार्ग इतना सहज है परिशिष्ट आगम आधार ● मुनिराजों के आशीर्वचन ...... ३ ७ ९ १७ २३ २९ ३६ ४२ ५० ६० ६९ ७९ ८८ ९७ १०५ ११९ १२४ (2) प्रकाशकीय जैनदर्शन के ख्यातिप्राप्त विद्वान, लोकप्रिय लेखक अध्यात्म-रत्नाकर सिद्धान्तसूरि पण्डित रतनचन्दजी भारिल्ल की नवीनतम कृति 'नींव का पत्थर का प्रकाशन करते हुए हमें हार्दिक प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। यद्यपि पण्डित रतनचन्दजी भारिल्ल का १८ मार्च, २००३ को हृदय का वाल्ब परिवर्तन जैसा बड़ा ऑपरेशन हुआ था और विशेषज्ञ चिकित्सकों द्वारा उन्हें पूर्ण विश्राम करने का परामर्श दिया गया था; तथापि पण्डितजी ने ऑपरेशन के पश्चात् दो वर्ष की लघु अवधि में ही 'हरिवंशपुराण' तथा 'महापुराण' जैसे ग्रन्थों का गहन अध्ययन कर उनके आधार पर 'हरिवंशकथा' तथा 'शलाका पुरुष' भाग एक व दो लिखे हैं। इस प्रकार ९५७ पृष्ठों में समाहित तीन मौलिक ग्रंथों की रचना की जो उनकी सृजनशीलता के प्रति जागरुकता की परिचायक हैं। इसी बीच २३० पृष्ठीय कृति 'ऐसे क्या पाप किए' भी प्रकाशित होकर पाठकों के हाथों में पहुँच चुकी है। इन चारों कृतियों के अल्पकाल में ही पाँच-पाँच हजार के संस्करण समाप्त हो चुके हैं। पाँचवीं पुस्तक आपके हाथ में हैं ही। रुग्णावस्था में लिखी गई ये पाँचों कृतियाँ बेमिसाल हैं। पण्डित रतनचन्दजी भारिल्ल उन विरले साहित्य सेवियों में हैं जो शरीर के अस्वस्थ होने पर भी द्रुतगति से लेखन कार्य में व्यस्त रहकर अपने जीवन के अमूल्य क्षणों का सदुपयोग कर रहे हैं। उनकी नवीनतम कृति 'नींव का पत्थर' ऐसे ही क्षणों में लिखी गई कृति है, जिसकी विषय वस्तु लेखक की अन्य प्रकाशित कृतियों से कुछ हटकर अत्यन्त उपयोगी है। यथानाम तथा गुण सम्पन्न प्रस्तुत कृति में मुक्तिमहल के नींव के पत्थरों के रूप में जिन गंभीर और अल्प चर्चित सिद्धान्तों का सरल-सुबोध भाषा शैली में प्रतिपादन हुआ है, उनकी अत्यन्त आवश्यकता थी। यह कार्य करके आदरणीय पण्डितजी ने एक बड़ी कमी की पूर्ति की है। सचमुच इन सिद्धान्तों के शिलान्यास के बिना मुक्तिमहल का बनना असंभव ही है। प्रस्तुत कृति में प्रतिपादित विषयों की सच्ची समझ से स्वतः ही मोह-रागद्वेष कृश होने लगते हैं जैनदर्शन के इन मूलभूत सिद्धान्तों को जाने बिना कोटि जन्मों तक तप करने पर भी हमारे कर्मों की निर्जरा होना संभव नहीं है।

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