Book Title: Navya Panch Karmgrantha Tatha Saptatika
Author(s): Devendrasuri, Purvacharya, Malaygirisuri
Publisher: Bharatiya Prachya Tattva Prakashan Samiti

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Page 9
________________ ६ ] प्रास्ताविक अने तेनी गाथा संख्याने लक्ष्यमा राखीने ग्रंथकारे पाडेल छे. प्रथमनां त्रण नामो ग्रंथना विषयने लक्ष्यमा राखीने अने पडशीति तथा शतक ए नाम गाथा - संख्याना आधारे पाडवामां आव्यां छे. विषय:- १ कर्मविपाक नामना पहेला कर्मग्रंथमां ज्ञानावरणीयादि आठ कर्मोना भेद-प्रभेदो, तेना विषाकनु' अने तेना बन्धहेतुओनु ं वर्णन करवामां आवे छे. २ कर्मस्तव नामना बीजा कर्मग्रंथमां चरमतीर्थपति श्री महावीर परमात्मानी स्तुति करवा द्वारा चौद गुणस्थानोमा बन्ध-उदय उदीरणा अने सत्तामां कइ कइ प्रकृतिओ होय ते अंगे निरूपण करवामां आवेल छे. ३ बन्धस्वामित्व नामना त्रीजा कर्मग्रंथमां चौद मूलमार्गणा अने तेना उत्तरमार्गणास्थानोमा गुणस्थान उपर बन्धस्वामित्वनो विचार करवामां आवे छे. ४ षडशीति नामना चोथा कर्मग्रंथमां जीवस्थान, मार्गणास्थान, गुणस्थान, भाव अने संख्यातानु स्वरूप ए पांच विभाग पाडीने विस्तृत वर्णन करवामां आवेल छे. आ पांच विभाग पैकी प्रथमना त्रण विभागमां बीजा विषयो पण वर्णववामां आव्या छे. (१) जीवस्थान उपर गुणस्थान, योग, उपयोग, लेश्या, बन्ध, उदय, उदीरणा, अने सत्ता से आठ विषय (२) मार्गणास्थान उपर जीवस्थान, गुणस्थान, योग, उपयोग, लेश्या अने अल्पबहुत्व अ छ विषय (३) गुणस्थान उपर जीवस्थान, योग, उपयोग, लेश्या, बन्धहेतु, बन्ध, उदय, उदीरणा अने सत्ता तेमज अल्पबहुत्व, ए दश विषय अने ते पछी पांच भाव अने संख्यातादिना स्वरूपनो विचार करवामां आवे छे. ५ शतक नामनो पंचम कर्मग्रंथ के जे आ बीजा भागमां छे. तेमां नीचे मुजब विषयो ं वर्णन आवे छे प्रथम कर्मग्रन्थमां बतावेली कर्मप्रकृतिओ पैकीनी कड् कड् प्रकृतिओ ध्रुवबन्धिनी, अध्रुवबंधिनी, ध्रुवोदया, अध्रुवोदया, ध्रुवसत्ताका, अध्रुवसत्ताका, सर्वघातिनी, देशघातिनी, अघातिनी, पुण्यप्रकृति, पापप्रकृति, परावर्तमानप्रकृति, अपरावर्तमानप्रकृति, क्षेत्रविपाकी, जीवविपाकी, भवविपाकी, पुद्गलविपाकी, प्रकृतिबन्ध, स्थितिबन्ध, रसबन्ध, प्रदेशबन्ध ते ते बन्धना स्वामी आदिनु' वर्णन करी, अंतमां उपशमश्रेणी अने क्षपकश्रेणीनु सविस्तर स्वरूप आपवामां आवेल छे. ६ सप्ततिका नामनो ग्रन्थ ( षष्ठ कर्मग्रन्थ) जे पूर्वाचार्य प्रणीत छे तेना उपर पूज्य मलयगिरि महाराजाओ (१२ मी शताब्दिमां ) भव्यवृत्ति करी छे जेमां कर्मोंना मूलभेदोथी अने उत्तरभेदोथी बंध-उदय-सत्ताना संयोगोनो सामान्यथी गुणस्थानकोमा, जीवभेदोमां, मार्गणामां

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