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कर्मविपाकनामना प्रथमकर्मग्रन्थनी विषयसूची ।
गाथा
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७-८
विषय १ मङ्गलाचरण, ग्रन्थनो विषय अने संबन्ध आदिनु कथन 'कर्म' शब्दनी व्युत्पत्ति जीवनु लक्षण अने कर्मनी सिद्धि कर्म अने जीवनो अनादिसम्बन्ध जीवनी साथे कर्मनो अनादिसम्बन्ध होय तो वियोग केम सम्भवे ? ए शङ्कानुसमाधान २ सामान्य रीते कर्मना प्रकृति, स्थिति, रस भने प्रदेश ए चार प्रकारो
अने तेनी मोदकना दृष्टान्त द्वारा समज कर्मना मूल अने उत्तर भेदोनी समुच्चय सङ्ख्या ३ कर्मनी मूलप्रकृतिनां नाम, ते दरेकनी व्युत्पत्ति तेमज उत्तर भेदोनी सङ्ख्या
मूलकर्मप्रकृतिओने ज्ञानावरणीयादिक्रमथी राखवानु कारण भने ४ ज्ञानना पांच प्रकार अने व्यञ्जनावग्रहना चार प्रकार पांच ज्ञाननु सामान्य स्वरूप केवलज्ञानमा मतिज्ञान आदिना अमावनी चर्चा पांच ज्ञानने मतिज्ञानादिक्रमथी राखवानां कारणो
९-१०-११ श्रुतनिश्रित अने अश्रुतनिश्रित मतिज्ञाननु स्वरूप अश्रुतनिश्रित मतिज्ञानना औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कर्मजा अने पारिणामिकी बुद्धिने आश्री चार प्रकारो अवग्रहना भेदो व्यञ्जनावग्रहना चार भेदो व्यञ्जनावग्रहमां मन भने चक्षुनुवर्जन शा माटे ? ए शङ्कानु समाधान
१३-१४ व्यकजनावग्रहनो काल
१४ ५ मतिज्ञानना अर्थावग्रह आदि २४ भेदो अने श्रुतज्ञानना उत्तरभेदोनी सङ्ख्या
मतिज्ञानना श्रुतनिश्रित २८ भेदो तथा ३३६ भने ३४० भेदोनु स्वरूप १४-१५-१६ ६ श्रुतज्ञानना अक्षरश्रुत आदि १४ भेदो अने तेनु सविशेष स्वरूप
१६-२० अढार लिपिनां नाम
१६-१७ दीर्घकालीकी, हेतुवादोपदेशिकी अने दृष्टिबादोपदेशिकी संज्ञाओनु स्वरूप, १७-१८ मिथ्यादृष्टिने सम्यक्श्रुतना अभावनी चर्चा
१८-१९ आचाराङ्ग आदि ११ अङ्गनां नाम अने पदनी सङ्ख्या दृष्टिवादना पांच भेदो
२० चौदपूर्वनां नाम अने प्रत्येकनी पदसङ्ख्या
२०-२१ ७ श्रुतज्ञानना पर्याय आदि २० भेदो अने तेनु स्वरूप
२१-२२ ८ अवधि, मनःपर्यव अने केवल ज्ञानना भेदो अवधिज्ञानना आनुगामिक आदि छ भेदोनु सप्रमाण वर्णन
२२-२४