Book Title: Navya Panch Karmgrantha Tatha Saptatika
Author(s): Devendrasuri, Purvacharya, Malaygirisuri
Publisher: Bharatiya Prachya Tattva Prakashan Samiti

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Page 8
________________ प्रास्ताविक अनन्त उपकारी ज्ञानी भगवंतोए मानवजन्मनी जे महत्ता बतावी छे, तेनु मुख्य कारण आ मनुष्यजन्ममां ज सम्यग्दर्शन-ज्ञान चारित्रनी आराधना सविशेषपणे शक्य छे. "सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्गः ॥" तथा 'ज्ञानक्रियाभ्यां मोक्षः' आदि सूत्रो द्वारा सम्यग्ज्ञाननु महत्त्व पण शास्त्रोमां स्थाने स्थाने बतायवामां आवेल छे. जैन ग्रंथो मुख्यपणे द्रव्यानुयोग, गणितानुयोग, कथानुयोग अने चरणकरणानुयोग एम चार विभागमा बचायेल छे. तेमां पण दर्शनशुद्धि माटे द्रव्यानुयोग घणो ज उपकारी छे. काछे के-दविए दसणसोही। द्रव्यानुयोगमा कर्मसाहित्य पण महत्त्व नो भाग भजवे छे. अन्य दर्शनोमां अनु नहिवत् स्थान छे, ज्यारे जैन दर्शनमा कर्मसाहित्य विपुल प्रमाणमा उपलब्ध छे. जैन दर्शन सांसारिक जीव विषयक कार्यनी उत्पत्तिमां पांच कारणो स्वीकारे छे. तेमां कर्म ए पण महत्त्वनो भाग भजवे छे. जीवोने संसारभ्रमण करावनार कोइ होय तो ते कर्मबन्धनां कारणो अने कर्म छे. अकर्मनु स्वरूप समजवा माटे द्वादशांगी उपर्गत सामान्य जीवो पण जाणी शके, समजी शके, ए माटे भावदयाथी भरेला पूर्वना उपकारी ज्ञानी महात्माओए तेमांथी (द्वादशांगीमांथी) नानामोटा प्रकरणो द्वारा विशाल प्रमाणमां कर्मसाहित्य रच्युछे. द्वादशांगीमा १२ मु अंग दृष्टिवाद के जे हाल विच्छेद पामेल छे, तेमां कर्मसाहित्य विशाल प्रमाणमां हतु, छतां तेना अंशरूपे पूर्वाचार्यों रचित अनेक ग्रंथो आजे पण मले छे. आजे श्वेताम्बर संप्रदायमा कर्मप्रकृतिसंग्रहणी, बन्धशतक, पंचसंग्रह, प्राचीन छ कर्मग्रंथ, सार्द्धशतक, नव्य पांच कर्मग्रन्थ आदि अनेक ग्रंथो टोका-भाष्य-चूर्णि आदि साथे उपलब्ध छे. तेवी रीते दिगंबर संप्रदायमां पण गोम्मटमार, लब्धिसार, क्षपणासार अने पंचसंग्रह आदि कर्मविषयक साहित्य उपलब्ध छे. नव्य पांच कर्मग्रथ-विक्रमनी १३-१४ सदीमां थयेल पू. आ. श्री देवेन्द्रसूरि महाराज-श्रीए नव्य पांच कर्मग्रन्थनी रचना करी छे. तेनां नाम अनुक्रमे-१ कर्मविपाक, २ कर्मस्तव, ३ बन्धस्वामित्व, ४ षडशीति अने ५ शतक, आ नामो ग्रंथनो विषय

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