Book Title: Navtattva Vistararth
Author(s): Jain Granth Prakashak Sabha
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

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Page 9
________________ ( ४ ) कादि अन्यदर्शनकारो ज्यारे शब्द ने आकाशनो गुण मानता हता त्यारे जैन सिद्धान्त उद्घोषणाथी जाहेर करी रघुंन्हतु अने करेले केशब्द ए भाषा वर्गणाना पुद्गलो छे. ते आज फोनोग्राफनी कलाए साबीत करी बताव्यं जे शब्द पुद्गल होवाथी ज पकडाय छे, द्रव्य अलग रहें अने गुणमात्र पकडाय ते बनी शके नहि, तेमज डॉ० बोझ के जेमणे जाहेर करेली वनस्पत्यादि स्थावरोमां जीवत्व साबीत करनारी युक्तिओ सांप्रतकालमा केटलाक लोकोने वीन भासे छे, परन्तु ते युक्तिओ प्राचीन आचार्य भगवन्तोए श्रीआचारांग- दशवेकालिकवृत्ति षड्दर्शनसमुच्चय वृत्ति आदिमां फरमावेल अनुमान आदि प्रमाण युक्तिओनो एक लेशमात्र छे तेमज पाश्चिमात्य वैज्ञानिको जुदा जुदा पद थे परिवर्तनना कारणभूत अनेक जात ना अणुओ छे तेम प्रथम कहेता अने हवे तेओज जाहेर करे छे जे एकज कारना परमाणुओं जुदा जुदा प्रकारे परिणाम पामी जुदी जुदी पार्थिवादि द्रव्य परिवर्तना बतावे छे, ज्यारं श्री सर्वज्ञदेवनो अचल सिद्धान्त डंको वगाडीने अनादिकालथी घोषणा करो रह्यो छे जे परमाणुमा अनन्तकाले अनन्तपदार्थ रूपे परिवर्तन पायवा नी अनन्ती शक्तिओ के. S अबाध्य सिद्धान्त अतिशय सपन्न सर्वजन प्रसिद्ध ते जैनदर्शन चार विभागे तनुं प्रतिपादन करे छे ? द्रव्यानुयोग - जे षड्द्रव्यो, कालने जीवाजीवमां अन्तर्भाव करवाथी पांच अथवा धर्मास्तिकायादिने अजीम दाखल करवायी जीव अने अजीव ए बे द्रव्यो, दरेकनुं यथास्थित लक्षणस्वरूप, सह विगुणो-क्रमभाविपर्याय अनेक परिणामो, भिन्नभिन्नकाले जुदी जुदी परिवर्त नाओ दरेक समये उत्पाद-व्यय-- प्रौव्यतुं घट, इत्यादि तव निश्चायक सम्यक्त्वशुद्धि तथा कर्मनिर्जराना हेतुभूत विचार बताव

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