Book Title: Navtattva Sahitya ane Ek Aprakat Chaupai Author(s): Suyashchandravijay, Sujaschandravijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 2
________________ ११२ अनुसन्धान-५८ पदार्थो पद्यानुवादमां छोडी दीधा छे. आम करवानुं चोक्कस कोई कारण समजायुं नथी. वळी कृतिनी प्रत रचनानी संवतमां ज, ते ज गाममां कर्ताना शिष्ये लखेली छे तेथी विशेष भूलोनो सम्भव ओछो छे. प्रस्तुत कृतिनी प्रत सम्पादनार्थे आपवा बदल श्री संवेगी शाळा भण्डारना व्यवस्थापकश्रीनो तेमज पू. मु. श्रीधर्मतिलकविजयजी नो खुब खुब आभार. अर्हं नमः ॥ ६० ॥ चोपाईनी ॥ पास जिनेसर प्रणमी पाय, सहगुर दांम तणें सुपसाय, नवतत्त्वनो कहुं विचार, सांभलयो चित दे नरनार ॥१॥ जीव अजीव पुण्य पापज जोय, आश्रव संवर निर्जरा होय, बंध मोक्ष नवतत्त्व ए सार, हवइ कहुं एहनो विस्तार ॥२॥ जीवतत्व चेतनलक्षण जांण, चउद भेद एहनां वखांण, अजीव अचेतनलक्षण जोय, चउदभेदे ए पण होय ॥३॥ पुन्यतत्व शुभ कर्मनो संच, बितालीसे भेदे तं च, पापतत्व असुभ कर्मनइ उदे, ब्यासी भेदे जिनवर दें ||४|| आश्रव ते कर्म आववानो ठांम, बितालीसें भेदे तांम, संवरतत्व आश्रवनो रूंधवो, सत्तावन भेदे ते स्वो ॥५॥ निर्जरातत्व कर्म खपावें तांम, बारे भेदें ते अभिराम, बंधतत्वना च्यार प्रकार, देव नर तिरी नर्क विचार ||६|| मोक्षतत्व कर्म क्षय करी जाय, नव भेदे तेहज कहवाय, बिसइं छहोत्तर भेद वखाण, श्रावक ते जे एहना जांण ॥७॥ चेतना लक्षण एक प्रकार, त्रसनई थावर दोइवी (वि)ध सार, त्रिविध पुरुष - स्त्री - नपुंसकइ, सुर - नर - तिरि - नारकी चउ थांनकइ ॥८॥ पांच प्रकारे जीव ज कहुं, एकंद्री बेरंद्री लहुं, ऐं नमः - तेरंद्री चोरंद्री सार, पंचंद्रीना बहु प्रकार ॥९॥ षटविध पृथवी अप तेउ वाय, वनसपती (ति) छठ्ठी त्रसकाय, इणिविध पांचसें त्रेसठ भेदे जीव, जिनवरजी भाखइ सदीव ॥१०॥Page Navigation
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