Book Title: Navtattva Sahitya ane Ek Aprakat Chaupai
Author(s): Suyashchandravijay, Sujaschandravijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 11
________________ फेब्रुआ जीव फीटी अजीव न थाय, अजीव फरीनें जीव न कहाय, भव्य टलीनें अभव्य न होय, अभव्यपणो टली भव्य न जोय ॥११९॥ परणामिकभाव ए जाणवो, जांणीनइ समकित आणवो, समकित पांमें सुख अनंत, इणिपरि भाख्यो श्रीभगवंत ॥१२०॥ अल्पबहुत्व ते सिद्धज तणा, किहां थोडा ने किहां घणा, नपुंसकसिद्ध ते थोडा जांण, असंख्यातगुणा स्त्रीसिद्ध वखांण ॥१२१॥ स्त्रीसिद्धथी पुरूष ज जोय, असंख्यात गुणा सिद्ध अधिका होय, एक समें सिद्ध केतला थाय, ति पण वात कही जिनराय ॥ १२२॥ दस नपुंसकसिद्ध ज जांण, वीस ते स्त्रीसिद्ध वखांण, एकसोआठ पूरषज कह्या, जिनवचनें आगमथी लह्या ॥ १२३ ॥ बिसे बहोत्तर बोलज सार, आगमथी कीधो विस्तार, नवतत्त्वनी चोपई एह, भणें गुणें सूख पांमे तेह ॥ १२४॥ श्रीलूंकागच्छसिणगार, श्रीपूज्य श्रीतेजसिंह गणधार, तास्स पार्टिं विराजें सार, कान्ह आचार्य ज्युं दिनकार ॥१२५॥ तास शासनमाहें सोभता, दांम मुंनीवर पंडित हता, तास्स शिष्य ऋषि वरसिंहें कह्या, ए बोल सिद्धांत थकी महं ग्रह्या ॥ १२६ ॥ संवत सतरछासठे उल्हास, नगर कालावड रह्या चोमास, गांधी गोकल वीनती करी, दांम मुनी शिष्यें चितमें धरी ॥१२७॥ 1 २०१२ १२१ ॥ इति श्रीनवतत्व चोपइ समाप्तः ॥ सं० १७६६ वर्षे श्रावण सुदि ९ दिने लिखितं पूज्य ऋषि श्री ५ दांमाजी तस्य शिष्य पूज्य ऋषि श्री ५ वरसंधजी तत् शिष्य ऋषि वालजी लपी कृतः ॥ कालावडनगरे शुभं श्रेयमङ्गलं ॥ ॥ खोटो अधिको उछो लिख्यानो मिछामिदुकडं ॥ श्री ॥ C/o. प्रसन्नचन्द्रस्मृति भवन, तलाटी रोड, पालीताणा

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