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नवतत्त्व साहित्य अने एक अप्रगट चोपाईं
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मुनिसुयशचन्द्र - सुजसचन्द्रविजयौ
सम्यग्दर्शननो सामान्य अर्थ थाय सारी रीते जोवुं. वाचकप्रवर उमास्वातिजी महाराज तत्त्वार्थाधिगमसूत्रना प्रथम अध्यायमां सम्यग्दर्शननी विशेष व्याख्या करता कहे छे के तत्त्वोनी श्रद्धा एटले ज सम्यग्दर्शन (सू. २). अहीं प्रश्न ए थाय के तत्त्व एटले शुं ? तत्त्व एटले सारभूत पदार्थ. परमात्मा श्रीमहावीरदेवे प्ररूपित करेला धर्ममां आवां तत्त्वोने स्थान आपवामां आव्युं छे. अहीं नवतत्त्व के तेना स्वरूपनी विशेष चर्चा न करता अमे नवतत्त्व सम्बन्धी साहित्य पर प्रकाश पाड्यो छे.
पूर्वाचार्योए नवतत्त्वना बोध माटे जुदी - जुदी अनेक रचनाओ करी छे. मानी केटलीक पद्यस्वरूपे तो केटलीक गद्यस्वरूपे, पद्यस्वरूपे मळती रचनाओ प्रकरण, कुलक, चोपाइ, स्तवनादि रूपे छे. तो टीका, भाष्य, बो आदि साहित्य गद्यरूपे उल्लेखनीय छे. प्राकृत, संस्कृत, गुजराती, राजस्थानी अने हिन्दी एम पांच भाषामां आ साहित्य रचायेलुं जोवा मळे छे. अज्ञातकर्तृक नवतत्त्वप्रकरणनी रचना बाद करता संस्कृत, प्राकृत भाषानी नवतत्त्वसम्बन्धी सौ प्रथम स्वतन्त्र कृति एटले ११मी सदीमां थयेला देवगुप्तसूरिजीनी रचना नवतत्त्व प्रकरण. एज प्रमाणे देश्य भाषानी कृतिओमां सौ प्रथम कृति एटले तपागच्छीय आ. श्री सोमसुन्दरसूरि कृत नवतत्त्वप्रकरण - बालावबोध सं. १५०२नी रचना. जोके आ प्रमाणेनी नोंध प्रकाशित थयेला सूचिपत्रोने आधारे कराई छे. कोई जग्याए त्रुटि होय एम बनवा जोग छे. कदाच कोइ कृति नोंधाया वगर पण रही गइ हशे तो विद्वानो तेनी नोंध करशे.
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आ चोपाईना कर्ता लूंकागच्छना श्रीपूज्य तेजसिंह, तेमना शिष्य श्रीकान्ह, तेमना शिष्य पं. दाम मुनिना शिष्य मुनि वरसिंह छे. तेमणे कालावडमां सं. १७६६मां आ चोपई रची छे, अने ते ज वर्षमां त्यां ज कर्ताना शिष्य लालजी ऋषिए आ चोपईनी प्रति लखी छे, जेना परथी आ सम्पादन करेल छे.
सम्पादित करेल कृति पण नवतत्वनी ज छे. कविए मूळना केटलाक
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पदार्थो पद्यानुवादमां छोडी दीधा छे. आम करवानुं चोक्कस कोई कारण समजायुं नथी. वळी कृतिनी प्रत रचनानी संवतमां ज, ते ज गाममां कर्ताना शिष्ये लखेली छे तेथी विशेष भूलोनो सम्भव ओछो छे.
प्रस्तुत कृतिनी प्रत सम्पादनार्थे आपवा बदल श्री संवेगी शाळा भण्डारना व्यवस्थापकश्रीनो तेमज पू. मु. श्रीधर्मतिलकविजयजी नो खुब खुब आभार.
अर्हं नमः
॥ ६० ॥
चोपाईनी ॥
पास जिनेसर प्रणमी पाय, सहगुर दांम तणें सुपसाय, नवतत्त्वनो कहुं विचार, सांभलयो चित दे नरनार ॥१॥ जीव अजीव पुण्य पापज जोय, आश्रव संवर निर्जरा होय, बंध मोक्ष नवतत्त्व ए सार, हवइ कहुं एहनो विस्तार ॥२॥ जीवतत्व चेतनलक्षण जांण, चउद भेद एहनां वखांण, अजीव अचेतनलक्षण जोय, चउदभेदे ए पण होय ॥३॥ पुन्यतत्व शुभ कर्मनो संच, बितालीसे भेदे तं च, पापतत्व असुभ कर्मनइ उदे, ब्यासी भेदे जिनवर दें ||४|| आश्रव ते कर्म आववानो ठांम, बितालीसें भेदे तांम, संवरतत्व आश्रवनो रूंधवो, सत्तावन भेदे ते स्वो ॥५॥ निर्जरातत्व कर्म खपावें तांम, बारे भेदें ते अभिराम, बंधतत्वना च्यार प्रकार, देव नर तिरी नर्क विचार ||६|| मोक्षतत्व कर्म क्षय करी जाय, नव भेदे तेहज कहवाय, बिसइं छहोत्तर भेद वखाण, श्रावक ते जे एहना जांण ॥७॥ चेतना लक्षण एक प्रकार, त्रसनई थावर दोइवी (वि)ध सार, त्रिविध पुरुष - स्त्री - नपुंसकइ, सुर - नर - तिरि - नारकी चउ थांनकइ ॥८॥ पांच प्रकारे जीव ज कहुं, एकंद्री बेरंद्री लहुं,
ऐं नमः
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तेरंद्री चोरंद्री सार, पंचंद्रीना बहु प्रकार ॥९॥
षटविध पृथवी अप तेउ वाय, वनसपती (ति) छठ्ठी त्रसकाय, इणिविध पांचसें त्रेसठ भेदे जीव, जिनवरजी भाखइ सदीव ॥१०॥
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बि भेदे एकंद्री जोय, सूक्षम बादर ए बें होय, सनी असनी पंचंद्री कह्या, गुरूवचन आगमथी लह्या ॥११॥ बेरंद्री तेरंद्री सार, चउरंद्री ए सात प्रकार, साते ए प्रजाप्त कह्या, साते ए अप्रजाप्त लया ॥१२॥ प्रजाप्तौ कहीए तेह, प्रजा पूरी करइ जेह, अप्रजाप्तो पूरी नव करइ, चउथी प्रजा विण कीधां मरइ ॥१३॥ ए जीवना चउद प्रकार, धारइ समदीठी नर-नार, जीव जांण्यां वी(वि)ण समकित नही, एहवी वातज जिनवर कही ॥१४॥ कहइ कहुं प्रजानो ज्ञान, जिण धार्या आपइ वीज्ञांन, संसारी जीवनइ प्रजा कही, सीधना जीवनें प्रजा नही ॥१५॥ आहारप्रजा पहिली जाणि, सरीरप्रजा बीजी वखांण, इंद्रीप्रजा त्रीजी कही, सासोसास ए चोथी लही ॥१६॥ पांच इंद्री ते पांचें पांण, मन-बल वचनबल कायबल जांण, सास-उसास अनें आयुखो, प्रांण दसविधने उलखो ॥१९॥ भाषाप्रजा पांचमी कही, मनप्रजा ते छठी लही, एकंद्रीने प्रजा च्यार, आहार सरीर इंद्री उदार ॥१७|| सासोसास ए च्यारज जांण, विगलंद्रीने पंच प्रमाण, पंचमी भाषा वधी सार, संगनीने मननो वीस्तार ॥१८॥ जीव ते जे प्रांणज धरे, प्रांण विना ते निश्चइ मरें, जे नर जीवना प्रांणज हरइ, तिण हंस्या नरकइं संचरइ ॥१९॥ धर्म अधर्म अने आकास, तीन तीन भेद एहना प्रकास, स्खंध देस अनें परदेश, दशमो काल कह्यो सूवीसेस ॥२१॥ चलणसभाव धर्मास्तिकाय, अधर्मास्ति ते थिर सूखदाय, विकास लखण आकासज कह्यो, गुरूप्रसाद आगमथी लह्यो ॥२२॥ काल ते समयाधिक जांण, हवइ कहुं तेहनो परिमाण, असंख्यात समें आवलिका जोय, कोडि एक सतसठलक्ष होय ॥२३।। सत्योत्तरसहस में बिसें सोल, एहथी आवलका महुर्त बोल, तीस महूर्त दिनरात्रं जाय, तीसे दिवसे मासज थाय ॥२४॥
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बारे मासे वरसज गिणौ, पांचे वरसे युग इम सुणो, वीसे युगे सोनो मांन, काल असंख ते इणिपरि जांन ॥ २५ ॥ पुदगलना ते च्यार प्रकार, खंध देस परदेस विचार, चउथो भेद ते परमांणुयो, खंध देस परदेसथी जुयो ||२६|| ए चउद भेद अजीवनां जांण, समदीठी ते करइ प्रमाण, हवइ नवविध पुन्यना सार, उपारजवानो कहुं वीचार ॥२७॥ दांनमांहि उतम अन्नदांन, बीजो पुन्य पांणि परधांन, स्थानकपूज्य ते त्रीजो सही, सेज्या पाट - पाटिलो गही ॥२८॥ वस्त्रदांन दीजे सीतकाल, पून्यइ फले मनोरथमाल, मणपून्य वचपून्य कायपून्य जांण, नवमो नमस्कारपुन्य वखांण ॥२९॥ ए नव पून्य उपार्जवानो ठांम, तेहना कह्या जुजूया नांम, पून्य भोगव्यानो कहुं प्रकार, बितालीसे भेदे सार ॥३०॥ सातावेदनी जेहथी सूख थाय, उचगोत्र धुर आसन लहवाय, मनुष्यगति मनुष्यानुपूरवी, गति जातो नवि भूले भवी ॥३१॥ देवगति देवपूरवी जांण, पंचंद्रीनी जाति प्रमांण, उदारीकसरीर मनिष तिर्यंच, विक्रय देवता - नारकी संच ॥ ३२॥ आहारक चउदपूरवीने होय, तेजस आहार पचइ ते सोय, कारमण ते कोदालीरूप, उदारीक अंगोपांगसरूप ॥३३॥ विक्रयअंगोपांग ज थुणुं, आहारकअंगोपांग ए भणुं, वज्रऋषभनाराचसंघयण, जिनजीना ए साचा वयण ||३४|| वज्र कहतां खीली जांण, ऋषभ ते पाटों वखांण, नाराच बेहूं पासे मंकडबंध, प्रथम संघयण ते इणिपरि संध ||३५|| वांम ढीचणथी जमणो खवो, दाहिण ढीचण डावो खवो,
मस्तकअग्रथी पालठी अंत, जमणा ढीचणथी डावो ढीचण जंत ||३६|| समचउरंस ए संस्थान, चिहुं भागे सरीखो मांन,
शुभवर्ण रातो पीलादि कह्यो, शुभरस ते मधुरादि लो ॥३७॥ शुभगंध कपूर चंपादि जेह, शुभस्फरश सूहालो तेह,
अगरूलघु भारी हलुयो सही, पराघात ते अनेरो जीपें नही ||३८||
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सासोसास लेतो जणाय, चउवीसमो ते ए कहवाय, आतप ते सूर्यनी परइ, उद्योत कर्म अजुयालो करइ ॥३९॥ निर्माणकर्म ते संधो सार, अंगोपांग रूडइ आकार, रूडी गति हंस सरखी जांण, त्रस सकति चालवानी आंण ॥४०॥ बादर आवइ द्रष्टिगोचरइ, परजाप्तो परजा पूरी करइ, प्रतेक एक सरीर एक जीव ज होय, थिरनाम अंगोपांग णीश्चल होय ॥४१॥ शुभनांम नाभि उपरि रूडो भणो, शुभग ते लोकने सोहांमणो, सुस्वर बोलें मीठे स्वरइ, आदेय जे वचन परिमांणज करे ॥४२॥ जसकर्म जेहनो जस बोलाय, सुर-नर-तिरीआयु बंधाय, तीर्थंकरनांमकर्म जे जांण, ए भेद बितालीस पून्य प्रमाण ॥४३॥
दुहा चउथो तत्त्व हवे सांभलो, पाप तणे उदय एह, ब्यासी भेद जिनवर कह्या, मनसुं धारो तेह ॥४४॥ मति-श्रुत-अवधि-मनपर्जव, केवलज्ञांन ए पंच, आवर्ण ढाकित होय, पाप तणो फल संच ॥४५।।
चोपड़ दानांतराय दांन नवि देवाय, लाभांतराय लाभ नवि थाय, भोगांतराय छतइ भोग विजोग, उवभोगे वली वली नवि जोग ॥४६।। एवइ कहुं वीर्य अंतराय, बल-पराक्रम ते नवि फोरवाय, चषुदर्शनावर्ण जे नेत्र विषं न होय, अचषुदर्शण नेत्र वीन अवर
इंद्रीबल न जोय ॥४७|| अवधिदर्शनावर्ण जे अवधि न उपजइ, केवलदर्शनावर्ण जे केवल न संपजइ, सुखें जागें ते नीद्रा जोय, कष्टें जागेइ निंद्रानिंद्रा होय ॥४८॥ बिठां निंद्रा आवइ जेह, प्रचलानिंद्रा कहीए तेह, वाटइ जांता उंघतो जाय, प्रचलाप्रचला ते कहवाय ॥४९॥ निंद्रामाहि करइ सव काम, थीणधीनिंद्रा तेहनो नाम, नीचगोतर ते नीची जाति, असातावेदनी पांमे घात ॥५०॥
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मिथ्यात जे मांने कुदेव, कुधर्म कुगरनी करइ सेव, हाल्या चाल्यानी शक्ति न होय, थावरपणो ते कहीए सोय ॥५१॥ दृष्टिगोचरइ नावइ जीव, ते कहीए सुक्ष्म सदीव, प्रजा ते पुरी नव करइ, अप्रजाप्तो सदाइ मरइ ॥५२॥ एकइ सरीरें जीव अनंत, साधारण ते कहीए जंत, दांत हाथ अंग हालें घणो, पाप उदय ते अथिरपणो ॥५३॥ नाभि उपरि पाडुयो आकार, अशुभपणो ते पाप प्रकार, भुंडो बोलइ लोक सब कोय, दोभागपणो ए सही होय ॥५४॥ स्वर बोलइ ते असूयांमणो, पाप उदय ते दुस्वरपणो, वचन न माने जेहनो कोय, अनादेयवचन एहज होय ॥५५॥ रूडो करतां जस न बोलाय, अजसपणो ते कहिवाय, नरकगति नरकानुपूरवी, नरकायुं पापें अनुभवी ॥५६।। क्रोध-मांन-माया-लोभज जांण, संजलना ए पक्ष प्रमाण, क्रोध-मान-माया-लोभ विचार, प्रत्याख्यानी मास ज च्यार ॥५७॥ क्रोध-मांन-माया ने लोभ, वरस एक लगें एहनो थोभ, अप्रत्याख्यांनी ए कहेवाय, पाप उदय त्यारे नवि जाय ॥५८॥ क्रोध-मांन-माया ने लोभ, भव भवना एहज मोभ, अनंतानबंधी एहज च्यार, पाप उदय रझले संसार ॥५९॥ हास-रति-अरति-भय-सोक, छठो ते डुगंछा थोक, पुरष-स्त्री-नपुंसकवेद, तीर्यच इकसठमो भेद ॥६०॥ तिर्यंचनी आंनपूरवी जांण, एकंद्री ते पाप प्रमाण, बेरंद्री तेरंद्री सही, चउरंद्री पाप प्रकृत कही ॥६१॥ कुछितगति रासभनी जांण, उपघात पडजीभी नांण, वर्ण-रस-गंध-स्फर्श विचार, ए पांमें ते असुभ असार ॥६२॥ पाटो बिहुं दिश माकडबंध, ऋषभनाराचसंघयण ए संच, बिहुं दिस माकडबंध पाटो खीली नही, नाराचसंघयणनी ए वातज कही ॥६३॥ एक दिशि माकडबंध ज होय, अर्धनाराच इणिपरि होय, कीलके खीली ढीली जोय, छेवटइ संधि लगाडी होय ॥६४॥
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नाभि उपरहो रुडो लहयो, निगोहसंस्थान इणिपरि कहयो, नाभि नीचइ ते रूडो जांण, उचो मँडो सादि वखांण ॥६५॥ वांमनसंघयण इणि परि जोय, मस्तक-ग्रीवा-हाथ-पग रूडो होइ, कुबज पुठइ उदर असार, एकासीमो पाप विचार ॥६६।। सघलां अंगोपांग करूप, हुंडकनो ए कह्यो सरूप; ब्यासी भेद ते पापना जोय, समदीठी ते छांडे सोय ॥६७||
दुहा श्रीजिनवरजी भाखीया, प्रश्नव्याकरण मझारि, पाप आवइ जिणे थानिकें, तेहना पांच प्रकार ॥६८।। भेद बितालीस जे कह्या, सूत्रमांहि वीस्तार, समकितधारी ते सही, जांणइ एह विचार ॥६९।।
चोपड़
इंद्री पांच ते जिनवर कही, पाप आवइ तिणें करी सही, क्रोध-मांन-माया-लोभ ए च्यार, प्रणातपात जीवनो संहार ॥७०॥ मृषावाद जूठो उचरइ, अदतांदान ते चोरी करइ, मैथुन जे परस्त्रीनी सेव, परिग्रह उपरि मन नितमेव ॥७१।। मन वचन कायाना योग, वीपरीतपणइ वरतावें लोग, काया अजयणा वरते जेह, कायकीक्रीया कहीए तेह ॥७२॥ हल-उखल-घरटी-कोदाल, अधिकरणनी क्रिया भाल, जीव-अजीव उपरि रीस, पाउसीक्रिया ने निसदीस ॥७३।। परतापनी क्रिया जे धरइ, पण आपणने पीडा करें, प्रणातपातकी जीवनो नास, आरंभीया करसण हाट प्रकास ॥७४॥ अनेक पदार्थ उपरि ममता सही, परगहीयाक्रिया ते कही, मायावतीयाक्रिया जांण, परनी वंचना करइ अजाण ॥७५।। मथ्यादसणवती हेव, कुगर-कुदेव-कुधर्मनी सेव, अपचखांणी पचखाण नव धरइ, स्त्रीपरसंसा इष्टकी करइ ॥७६।। पिष्टकीक्रिया ईम उचरइ, भलो भूडो देखी राग-द्वेषज करइ, पाडुचीक्रिया ते कहिवाय, किणही कने वस्त देखी न जाय ॥७७||
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अनुसन्धान-५८
सामंतोपक्रियापातकी, ठांम उघाडा राख्या थकी, नेसथीया अन्य पासइ सस्त्र घडाय, साहथीया पोतें सस्त्र कराय ॥७८।। जीव अजीव पासे आणाय, आंणवणीक्रिया कहिवाय, वीयारणीयाक्रिया जांण, फल मोटा वीदारें आण ॥७९।। जिमतां भाणामांहि माखी मरइ, अणाभोगीक्रिया इम करइ, जिण कीधइ लोकमां मूंडो थाय, अणवकंखीयाक्रिया कहिवाय ॥८०॥ अन्य पासे जे पाप कराय, अनापोगीक्रिया लगाय, घण जननो मन एक ज थाय, सामुदाणीक्रिया भणाय ॥८१॥ मित्रादि अर्थे जे करइ कर्म, पेजवतीया एहनो मर्म, अबोलणइ जे कर्म बंधाय, दोसवतीया ते कहिवाय ॥८२।। अप्रमादीने लागे जेह, ईरियावहीयाक्रिया तेह, ए बेतालीस आश्रव द्वार, समदीठी छांडइ निरधार ॥८३।।
दुहो भेद सतावन हवइ कहुं, संवरना जगसार, मनसुध पालें प्रेमसुं, ते उतरे भवपार ॥८४।।
चोपइ
झुंसर प्रमाणे जोवे जेह, इर्यासुमति कहीए तेह, सावध टालें निरवद्य उचरइ, भाषासुमति इणिपरि धरइ ॥८५॥ दोषरहित जें लीयें आहार, एषणासुमति कहीए जगसार, लीयें-मुकें जयणायें करी, आदांननिखेपणा मन-चित्त धरी ॥८६॥ जीव जतन करी परीठावइ, परठावणि सुमति इम नवइ, मनसाखे नवि करइ पाप, मनगुपति ते इणिपरि थाप ॥८७॥ सावधवचन बोलइ नही, वचनगुपति ते कहीए सही, संवर राखे आंपणी काय, कायासुमति ते कहिवाय ॥८८।। आरंभ न करे भुखां मरइ, सूधा परिसहो इणिपरि धरइ, काचो पांणी न पीय लगार, तृस खमे तृषापरिसहे सार ॥८९॥ सीत परीसहें सीत ज खमे, अग्नि न वांछे काया दमे, उश्न परीसहे लागे ताप, सनांन न वांछइ कहीए आप ॥९०॥
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डांस - मंस परीसहो सही, डांस मसा उडाडइ नही
वस्त्र छतइ वस्त्र वांछइ नही, अचेलपरीसो कहीए सही ॥९१॥ अरतिपरीसहो मन उद्वेग, स्त्री देखी आंणें संवेग, चर्यापरीसहें वीहार ज करइ, कष्ट सहें मन धीरज धरइ ॥ ९२॥ सझायभूमि डोलइ नही, नसीयापरीसह एहज सही, रूडो भूडो स्थानक नवि कहे, सेज्यापरीसहो निसदिन सहै ॥९३॥ कडुया वचन अहियासे जेह, अक्रोसपरीसह कही तेह, मारता कुटतां खिमा करइ, वधपरीसहो इणिपरि धरइ ॥९४॥ भीक्षा मांगतां न करे अभिमान, जाचनापरीसो इणिविध जांन, अणलाधे दीनज नवि थाय, अलाभपरीसो ते कहिवाय ॥९५॥ रोग आव्यें उषध नवि करइ, रोगपरीसहो इणिपरि धरइ, डांभ तरणांनो फरसज सहें, तणफासपरिसो इणिविध कहें ॥ ९६ ॥ दीलनो मेंल उतारें नही, मलपरीसो कहीए सही,
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आदर देखी न करे अभिमान, सतकारपरीसो एहज जांन ॥ ९७॥ भण्या गुण्यानो गर्व नवि करइ, परीगन्यापरीसहो इणिपरि धरइ, भणतां नावें तव दीन नवि थाय, अनांणपरीसो ए कहिवाय ॥९८॥ समकितथी नवि डोले जेह, समकिंत परीसहो कहीए तेह,
क्षांति क्षमा जे क्रोध नवि करइ, आर्जवपणो अभिमान नवि धरइ ॥९९॥
मुत्ती ते लोभनो परिहार, तप छ भेदे कहीयो सार,
संजम सत्तर भेदे आंण, सत्य सांचो बोलेवो जांण ॥१००॥
जेणि क्रिया कर्म लागै नही, शौचपणो ते कहीए सही,
अकिंचनपणें धन न रखाय, नव वाडि सहीत ब्रह्मचर्य कहिवाय ॥१०१॥ दसविध यतीधर्म कह्यो सार, चालीसमो ए संवरद्वार,
बार प्रकारे भावना कही, पांच प्रकारे चारित ग्रही ॥ १०२ ॥
सतावन भेदे संवरद्वार, श्रावक ते धारे निरधार,
छ भेदे तप बाह्य ज कयो, छ भेदे अभितर लो ॥१०३॥
बारे भेदे निर्जरा सार, पाले ते उतरें भवपार,
अणसण छठ अठमादि करइ, अणोदरी पेट पूरो नवि भरइ ॥ १०४॥
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अनुसन्धान-५८
वृतसंक्षेप कह्यो तप सार, सचितद्रव्य करें परिहार, रसत्याग जे आंबिल करे, कायक्लेस आतापना धरे ॥१०५।।
आंगोपांग संवरीने रह्यो, सलीनतातप तिणनें कह्यो, दुषण लागे प्रायछित धरइ, ज्ञांनी गुरुनो विनय करइ ॥१०६।। गुरूने आणी आपें आहार, वीयावचतप कह्यो सार, मन वचन ठांम राखी काय, पांच प्रकारे करो सज्झाय ॥१०७॥ सू(शु)कलध्यांन धर्मध्यांन ज धरो, कर्म खपावा काउसग्ग करो, बार प्रकार नीरजरा कही, पांचमें आगमें गुरमुखथी लही ॥१०८॥ प्रकृतिबंधनो एह प्रस्ताव, रूडो पाडुयो होय सभाव, स्थितबांधी करमें जेतली, ते सही जीव भोगवें तेतली ॥१०९॥ अनुभाग रूप रस केलवो, प्रदेस कर्मना दल मेलवो, ए बंधना च्यार प्रकार, टाले ते भव पामें पार ॥११०॥ मोक्षतत्व ते नवमो द्वार, तेह तणो कहुं अधिकार, छतो पद ते मोक्षज सही, आकासकुसमनी पर नही ॥१११॥ बीजें भेदें द्रव्यप्रमाण, मोक्ष विषे सिद्ध केतला जाणि, जीवद्रव्य सिद्धना अनंत, एहवी वात कही भगवंत ॥११२॥ सिद्धक्षेत्र ते केतलो होय, सिद्ध रह्या अवगाही जोय, असंख्यातमे भागे लोकनें जांण, सिद्ध रह्या एक अनंता मान ॥११३॥ स्फर्शना द्वार ते चोथो कयो, सिद्ध केतलो खेत्र फरसी रह्यो,
क्षेत्र थकी मांनो निरधार, झाझेरो ते स्फर्शना सार ॥११४।। सिद्धने हुयो केतलो काल, ते भाख्यो छे दीनदयाल, एक सिद्ध आश्री सादि अनंत, सहु आश्री अनादि अनंत ॥११५।। छठो कह्यो सिद्ध अंतर द्वार, सिद्ध सिद्धमां अंतर सार, सिद्ध सिद्धमां अंतर नांहि, सिद्ध रह्यो छै माहोमांहि ॥११६॥ भाग द्वार सातमो वखांण, केतमें भागे सिद्ध रह्या जाण, संसारी ते सघला जीव, अनंतमें भागें सीध सदैव ॥११७॥ आठमा द्वार तणो प्रस्ताव, सिद्ध रह्या छै केहवि भाव, ज्ञांन दर्शन छे क्षायिकभाव, जीव पणो परिणामकभाव ॥११८॥
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फेब्रुआ
जीव फीटी अजीव न थाय, अजीव फरीनें जीव न कहाय, भव्य टलीनें अभव्य न होय, अभव्यपणो टली भव्य न जोय ॥११९॥ परणामिकभाव ए जाणवो, जांणीनइ समकित आणवो, समकित पांमें सुख अनंत, इणिपरि भाख्यो श्रीभगवंत ॥१२०॥ अल्पबहुत्व ते सिद्धज तणा, किहां थोडा ने किहां घणा, नपुंसकसिद्ध ते थोडा जांण, असंख्यातगुणा स्त्रीसिद्ध वखांण ॥१२१॥ स्त्रीसिद्धथी पुरूष ज जोय, असंख्यात गुणा सिद्ध अधिका होय, एक समें सिद्ध केतला थाय, ति पण वात कही जिनराय ॥ १२२॥ दस नपुंसकसिद्ध ज जांण, वीस ते स्त्रीसिद्ध वखांण, एकसोआठ पूरषज कह्या, जिनवचनें आगमथी लह्या ॥ १२३ ॥ बिसे बहोत्तर बोलज सार, आगमथी कीधो विस्तार, नवतत्त्वनी चोपई एह, भणें गुणें सूख पांमे तेह ॥ १२४॥ श्रीलूंकागच्छसिणगार, श्रीपूज्य श्रीतेजसिंह गणधार,
तास्स पार्टिं विराजें सार, कान्ह आचार्य ज्युं दिनकार ॥१२५॥
तास शासनमाहें सोभता, दांम मुंनीवर पंडित हता,
तास्स शिष्य ऋषि वरसिंहें कह्या, ए बोल सिद्धांत थकी महं ग्रह्या ॥ १२६ ॥ संवत सतरछासठे उल्हास, नगर कालावड रह्या चोमास,
गांधी गोकल वीनती करी, दांम मुनी शिष्यें चितमें धरी ॥१२७॥
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॥ इति श्रीनवतत्व चोपइ समाप्तः ॥ सं० १७६६ वर्षे श्रावण सुदि ९ दिने लिखितं पूज्य ऋषि श्री ५ दांमाजी तस्य शिष्य पूज्य ऋषि श्री ५ वरसंधजी तत् शिष्य ऋषि वालजी लपी कृतः ॥ कालावडनगरे शुभं श्रेयमङ्गलं ॥
॥ खोटो अधिको उछो लिख्यानो मिछामिदुकडं ॥ श्री ॥
C/o. प्रसन्नचन्द्रस्मृति भवन,
तलाटी रोड, पालीताणा
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नवतत्त्व प्रकरण (मूळ) अंबप्रसाद
नवतत्त्व प्रकरण (मूळ) देवगुप्तसूरि ३ नवतत्त्व प्रकरण (मूळ) मणिरत्नसूरि
१
२
০ 5 w vac
| ११
१० नवतत्त्व वृत्ति
|१२
|१३
१४
नवतत्त्व प्रकरण (मूळ) अज्ञात
नवतत्त्व कुलक नवतत्त्व प्रकरण टीका अंबप्रसाद
(श्रावक) नवतत्त्व प्रकरण टीका मानविजय नवतत्त्व प्रकरण (मूळ) रत्नचन्द्र नवतत्त्व प्रकरण (मूळ) तेजसिंह
देवेन्द्रसूरि
11
11
11
"
=
11
44
"
::
जीवाजीवापुण्णं.....
जयशेखरसूरि महेन्द्रप्रभ अंचल १४मी सदी जीवाजीवापुण्णं...
१२२०
(श्रावक)
कक्कसूरि उपकेश विजयसिंह तपा
- सूरि
नेत्रसिंह वीरसागर
१२२० जीवाजीवापुण्णं... १२मी सदी सच्चं च मोक्खबीअं... १३मी सदी जीवाजीवापुन्नं
हर्ष
संघतिलक रुद्रपल्लीय १५मी सदी
-सूरि
कुलमण्डनसूरि देवसुन्दर तपा
१४मी सदी
- सूरि समयसुन्दरजी सकल
- चन्द्रजी
खरतर १६८८
प्रणम्य पाद
५३
१४
५५
६०
३६
सं. मुनिसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयौ
संस्कृत - प्राकृत साहित्य श्रीनवतत्त्व-विषयक
१२२
अनुसन्धान-५८
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फेब्रुआरी - २०१२
अज्ञात भाष्य | अभयदेवसूरि जिनेश्वरसूरि | चन्द्र |१२मी सदी| भूयत्था इह अवितह
| भावा... वार्त्तिक | रत्नलाभ उपा. विवेकरल | खरतर |१८मी सदी अवचूरि साधुरत्नसूरि देवसुन्दरसूरि तपा । १४५६ जयति श्रीमहावीर...
आसपास हर्षवर्धनसूरि कनकोदय । खरतर | १७८५ शुभरत्नसूरि देवसुन्दरसू. | तपा |१५मी सदी गुणरत्नसूरि । " मुनिविजय शान्तिविजय | -गणि -गणि अज्ञात
वीरं विश्वेश्वरं विवरण | यशोदेवसूरि सिद्धिसूरि | उपकेश | ११६५ | मोक्षस्यादिमकारणं...
माणिक्यसु.सू. मेरुतुङ्गसूरि अंचल | १४८४-आसपास प्रेममण्डनसूरि
अज्ञात विचार भावसागर
अज्ञात
"
"
सारोदार
"
१२३
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१ नवतत्त्वनी चोपाई
२
३
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७
८
९
१०
N & M N x 10 10 10 10
११
१२
| १३
१४
१५
|१६
| १७
१८
17
11
:::
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17
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17
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17
17
27
17
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ढाल
जोडी / रास
11
रास
चोपाइ
विचार स्तवन
रास चोपाइ
"
""
17
भाषा
स्तवन
अज्ञात
भावसागर
अंचल आनन्दवर्धन धनवर्धन खरतर कमलशेखरसू. लाभशेखर अंचल विजयदानसूरि तपा
""
"
हर्षसागर
वेलामुनि
ऋषभदास
देवचन्द्र
वृद्धिविजय
मानविजय
हेमराज
वरसिंह
भाग्यविजय
धर्मचन्द्र
निहालचन्द
विजयसेनसूरि
भानुचन्द्र सत्यविजय
जयविजय
लब्धिकीर्ति खरतर
लोंका
पद्यसाहित्य
दाम मणिविजय तपा
हर्षचन्द्र
17
ऋद्धिवल्लभ
मयाचन्द
चोपाइ
भिक्खुजी
भाषा गर्भित स्तवन ज्ञानसार
रत्नराज
विचार स्तवन विवेकविजय डुंगरविजय
""
""
"
""
पार्श्वचन्द्र
27
१५७५ १६०८ आसपास
१६०९
१६२२आसपास आदि जिणंद नमेवि ए...
11
11
"
१७१३
१७१८
आदि नमी आणंदह पूरि...
सरसति सांमणि समरू माय...
१७४७
१७६६
""
"
१६७६
आदि धर्म जिणइ उद्धर्यो...
८११
१६९२ पूर्वे सकल जिणेसर प्रणमी पाय...
२९६
९५
सरसती सरसती सरसती देवी.. प्रणमुं जिन चडवीसमो....
ढाळ - १५
श्री श्रुतदेवता मनमें ध्याय...
८२
पास जिणेसर प्रणमी पाय...
१३१
श्री अरिहंतना पाययुगल प्रणमी... १६७ मङ्गलकरन हरन दुखदंद.....
सादर सदगुरु प्रणम्य कर...
१८०६
१८०७
खरतर
१८१२ तेरापन्थी १८६० आसपास - १८६१
खरतर
तपा
१८७२
"
५९
नमस्कार अरिहंतनें... सरसतीनें प्रणमुं सदा....
६५
१५३
६५
६५
३३
ढाळ १३
१२४
अनुसन्धान-५८
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| १९
२०
२१
|२२
|२३
२४
2 2 2 2 2 2 2 2 & 3 m
::::
२५
|२६
२७
|२८
२९
३०
11
|३२
"
|३३
-
वर्णनमय अभिनन्दन अमरचंद
-जिनस्तवन
चोपाइ
11
गरबो
11
"
17
17
"
17
"
"
"
17
17
11
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""
"T |३१
""
भाषा
17
71
जिन स्तवन.
चंदुलाल - न्हानचंद
गर्भित स्तुति
मावजी शाह अमरविजय
जिनदत्त
ब्रह्म
मेरुमुनि
अज्ञात
11
वर्णन दुहा
स्तवन
लक्ष्मीकीर्ति
वर्णनमय सीमन्धर जीवनविजय
11
""
""
मानविजय
२० मी सदी बेनी बोलो ना तोये बोलावशुं रे..
अभिनन्दन अभिनन्दन मारा...
पढम चरण जिन हुं नमुं...
नमुं वीर सासनधणी.... मिच्छत अविरत प्रमाद है... परम निरंजन परम गुरू... चेतनवंत अनन्त गुण.... श्रीश्रुतदेवी मनमें ध्याय...
शान्ति जिणेसर सदगुरु शरण... संप्रतिमां ते सीमन्धर तारक...
जीवाजीवा पुण्य नें पावा....
४
फेब्रुआरी- २०१२
१२५
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१
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9 vara 2 2 2 2 w
९
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नवतत्त्व बालावबोध सोमसुन्दरसूरि
17
" शिष्य साधुकीर्त्ति
पद्मचन्द्र सकलचन्द्रजी
अज्ञात
17
17
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::::
17
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17
"
17
11
11
::::
11
77
"
(?) देवचन्द्र
बालावबोधसाहित्य
पद्मचन्द्र शिष्य पद्मचन्द्र
विमलकीर्ति
देवसुन्दरसूरि तपा. सोमसुन्दरसूरि
""
अमरमाणिक्य खरतर
11
जिनचन्द्रसूरि
खरतर
उपा. रामविजय दयासिंह जिनोदयसूरि जिनसागरसूरि मतिचन्द्र
फतेचंद
महीरन नयविमल
"
विमलतिलक खरतर
17
11
१५०२
१६मी सदी
१७मी सदी पार्श्वं नत्वा सुबोध....
१७१७
१७४८
१७६१
१७६६
१७६६
१७मी सदी
१८३९ १८मी सदी
ज्ञानं पञ्चविधं....
१२६
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वन्दित्वा नन्दमानन्द....
अज्ञात (लेश प्रकाशक स्तव प्रदीप)
फेब्रुआरी - २०१२
हवे नवतत्वना नाम... जीवतत्व ते श्रीशङ्केश्वर... पहिलं जीवतत्व... जीवनइ दस प्राण... समकित विना ज्ञान... उत्तराध्ययन सूत्र... यथाभूत साची वस्तुनो... जीव कहेतां च्यार... जीवतत्व कणीने कहीजे... हवे विवेकी सम्यक्....
लक्ष्मीवल्लभ
१७४७
१२७
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१२८
नवतत्त्व टबार्थ
or rm 39 No.
2
टबार्थ साहित्य मानविजय
१७७३ श्रीवीरजिनं नत्वा... जिनहंस
१७८४ जिनराजसूरि | जिनहंससूरि
१७मी सदी शिवनिधान उ. हर्षसार उपा. खरतर " जेह नमुंजे माहिलो.... जिनरङ्गसूरि | जिनराजसूरि | खरतर | १८मी सदी लालचंद
अरिहंतादिक पंच... रङ्गविजय मेरुविमल
जीवनुं स्वरूप ते... उत्तमविजय नित्यविजय
जयति श्रीमहावीर... हितरुचि
जीवतत्व अजीवतत्त्व... श्रावक दलपतराम पार्श्वचन्द्र साधुरत्नसूरि | सौधर्मगच्छ १६मी सदी | साचउ वस्तुनउ स्वरूप... रूपचंद
वीतरागं नमस्कृत्य.... लालकुशल
श्रीगुरूणां प्रसादेन... पद्महर्ष
श्रीपार्श्वदेवं...
अनुसन्धान-५८
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अज्ञात
अज्ञात अज्ञात अज्ञात
फेब्रुआरी - २०१२
अज्ञात
अज्ञात अज्ञात
यथावस्थित साचं जे... जैनमतनइं विषई.... जीवति प्राणान्... चेतना सहित ते जीव... जीवतत्त्व प्राणधरें... नत्वा देवार्यदेवेश... जीवतत्व अजीवतत्व... प्रणम्य पार्श्वनाथं... जीवतत्व जे माहि... भव्यप्राणीइं समकित... जीवतत्व जे प्राणनइं... तत्र प्रथम जीव...
अज्ञात
अज्ञात
अज्ञात
अज्ञात
अज्ञात
१२९
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अन्य साहित्य
१३०
नवतत्त्व बोल
विनीतसागर
अज्ञात अज्ञात अज्ञात अज्ञात
or rm 03_vo
जीव रूपी के अरूपी... ज्ञानना रागी समकित दृष्टि... ५६३ भेद जीवना... अब जीवद्रव्य की पहिचान करावे है....
" २७६ बोल
जीवतत्व अजीवतत्व...
अज्ञात अज्ञात अज्ञात अज्ञात अज्ञात
२४ भेद भेद विचार विचार
अज्ञात अज्ञात
परमसौभाग्य अज्ञात
सम्यग्दृष्टिने जे बोल.... नवतत्वमांहि रूपी केटला... | विवेकी सम्यग्दृष्टि जीवोए...
अनुसन्धान-५८
अज्ञात
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________________ अज्ञात अज्ञात अज्ञात अज्ञात अज्ञात " 9 द्वार विचार "13 द्वार विचार समकित विना ज्ञान न काम आवे... नवतत्व नाम-जीव मूल लक्षणद्वार... जैनानां हि नवतत्वा-नवपदार्था.. जीव चेतन 1 अजीव अचेतन हवे विवेकी सम्यग्दृष्टि जीवनें नवपदार्थ.... जीवतत्त्व-जे चेतना... फेब्रुआरी - 2012 " थोकडो अज्ञात अज्ञात अज्ञात मालविजय टीकमजी अर्थ वचनिका अथ 9 पदार्थना 24 द्वार कहे " चौभङ्गी स्वरूप " भेदनाम यन्त्र " वचनिका जीवतत्व चेतनालक्षणो... जीवद्रव्य प्राण चेतन.... खरतर अज्ञात सुमतिवर्धन पन्नालाल चौधरी 131