Book Title: Nandisutram Avchuri
Author(s): Devvachak, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ नन्दिसूत्रम् ॥ १४ ॥ xxx विमलमगतं च धम्मं सन्तिं कुथु अरं च मलि च । मुनिसुव्वय नमि नेमिं पासं तह वद्धमाणं च ॥ २१ ॥ तदेवं संघस्य अनेकधा स्तव अमिहितः, संप्रति आवलिकाः प्रतिपादनीयाः, ताथ तिस्रः, तद्यथा - तीर्थकरावलिका गणधरावलिका स्थविरावलिका च तत्र प्रथमतस्तीर्थकरावलिकामहं वंदे इत्यादिगाथाद्वयं निगदसिद्धं || १८ ||१९|| २० ||२१|| पढमित्थ इंदभूइ बीए पुण होइ अग्गिभूहत्ति । तईए य वाउभूह नओ वियते सुहम्मे य ॥ २२ ॥ मंडिअ मोरिय पुत्ते अकंपिए चैव अयल भायाय । मे अजेय पहाय गणहरा हुति वीरस्स ॥ २३ ॥ गणधरावलिका तु या यस्य तीर्थकृतः सा तस्य प्रथमानुयोगात् द्रष्टव्या, भगवदर्द्धमानस्वामिन आह- 'पढमित्थ' इत्यादि गाथा द्वयं एतदपि निगदसिद्धं || २२|| २३ || frogs सासणयं जयइ सया सवभावदेसणयं । कुसमयमयनासणयं जिणिदवर वीरसामणयं ॥ २४ ॥ निम्बु इत्यादि, निर्वृत्तेः- मोक्षस्य पंथा- सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि, निवृत्तिपथस्य शासनं शिष्यतेऽनेन इति शासन-प्रतिपाद कं, निवृत्तिपथशासनं, ततः ['स्वार्थे] कश्च [वा'] इति (८-२-१६४) प्राकृतलक्षणात् स्वार्थे कः प्रत्ययः, निष्टत्तिपथः शासनकं, एवमन्यत्रापि यथायोगं कप्रत्यय भावना कार्या, सदा-सर्व्वकालं जयति, सर्वाणि अपि प्रवचनानि प्रभावातिशयेन अतिक्रम्य अतिशायि वर्त्तते कथंभूतं सत् इत्याह- सर्वभावदेशनकं, तत एव कुसमयमदनाशनकं कुत्सिताः समयाः परतीर्थिकप्रवचनानि तेषां मदः - अवलेपः अवचूरीसा कृतम् ॥ १४ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 ... 240