Book Title: Nagil Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 5
________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir + नागील ॥ ३ ॥ अर्थः-जे पुरुष काजलविनाना, वाटरहित, तथा तेलना खर्चविनाना निष्कंप दीपकने हमेशां धारण करे, ते पुरुष मने परणी शकशे.४ चरित्रं इति तस्या वचः श्रेष्ठी बरेष्वनुदिनं दिशन् । अस्याः काभिग्रहः पूर्य इत्यातचिन्तयाजनि ॥ १०॥ | अर्थ:-ते लक्ष्मण शेठ तेणीनुं एरीतर्नु वचन वरोने हमेशां जणावतोथको आनो (आ) अभिग्रह क्यांथी पूरो थाय? एवी || ॥३॥ | चिंताथी दुःख पामवा लाग्यो. ॥ १० ॥ नागिलः कान्तकायस्तु कितवो लङ्घनघनैः तुष्टं यक्ष विरूपाक्ष बनेऽभ्यथर्यताग्रहात् ॥ ११ ॥ ___अर्थः- एवामां मनोहर शरीरवाळो ( कोइक ) नागिलनामनो धूर्त घणी लांघणोथी तुष्टमान थयेला वनमा रहेला विरूपाक्ष नामना यक्षने आग्रहपूर्वक प्रार्थना करवा लाग्यो के, ॥ ११ ॥ नन्दयोक्तोयथा दीपस्त्वं तथा भव मदगृहे । इति यक्षेण दत्तेऽर्थे स ययौ अष्टिनोऽन्तिके ॥ १२ ॥ अर्थ:-जेवो नंदाए दीपक कहेलो छे, तेवा दीपकतरीके तुं मारा घरमा रहे? पछी तेवीरीतनो वर यक्षे आपवाथी ते नागिल | लक्ष्मणशेठपासे गयो. ॥ १२ ॥ कितवाय दरिद्राय नन्दिनी स्वां ददामि मे । अभिग्रहमहं तस्या हन्त पूरयितुं क्षमः ॥ १३ ॥ ___अर्थः-( अने कहेवा लाग्यो के ) दरिद्र तथा धूर्त एवा मने जो तारी दीकरी आपे, तो खरेखर हुँ तेणीनो अभिषह संपूर्ण | करवाने समर्थ छु. ॥ १३ ॥ यादृक्ताहरभवेस्त्वं भोः पूरिताभिग्रहो यदि । तत्ते दाम्यहं पुत्रों गङ्गामिव पयोधये ॥ १४ ॥ 296 C CECRECORE ECRECREX For Private and Personal Use Only

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